मूर्ति तो जड़ पदार्थ है फिर मूर्ति पूजा क्यों की जाती है?

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शंका

मूर्ति तो जड़ पदार्थ है फिर मूर्ति पूजा क्यों की जाती है?

समाधान

मूर्ति पूजा का चलन बहुत प्राचीन काल से है। निश्चित मूर्ति जड़ है पर पूजा एक भावनात्मक प्रक्रिया है और ये पूजा का और भावना का प्रभाव है कि जड़ प्रतिमा में भी चैतन्य भगवान की स्थापना कर दी जाती है। 

एक बार विवेकानंद जी से किसी राजा ने प्रश्न किया, ‘मूर्ति पूजा क्यों करते हैं? मूर्ति तो पत्थर की होती है उसकी पूजा करने से क्या लाभ?’ वहीं पर उस राजा के पिताजी की तस्वीर लगी थी। बातचीत के क्रम में विवेकानंद जी ने कहा- ‘ ये तस्वीर किसकी है?’ राजा बोला -‘मेरे पिताजी की’, ‘आप बताइए इस तस्वीर पर मैं थूकुंगा तो आपको कैसा लगेगा?’ ‘बहुत बुरा लगेगा।’ विवेकानंद जी बोले – ‘ बुरा लगने की क्या बात है? वह तो कागज की तस्वीरें हैं’, ‘तो क्या हुआ? मेरे पिताजी की तस्वीर है, मेरी उससे भावना जुड़ीं हैं; इसलिए मुझे बुरा लगेगा।’ तब विवेकानंद जी ने उसे समझाया कि ‘बस! एक कागज की तस्वीर पर आपकी भावना जुड़ने से वह आपको तस्वीर न दिख कर पिता के रूप में दिखती है। ऐसे ही जब पत्थर की मूर्ति में अगर भावना जुड़ जाएँ तो हम उस मूर्ति न देखकर उसमें भगवान देखते हैं।

यह बहुत प्राचीन परम्परा है और जबसे जैन धर्म है, तबसे मूर्ति पूजा है। पुरातत्त्व विभाग के अनुसार भारत में मूर्ति पूजा का प्रवर्तन जैनियों के द्वारा किया गया। अमलानंद घोष की कृति है – जैन कला एवं स्थापत्य; यह भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित कृति है। उसमें उन्होंने इस बात का बहुत स्पष्ट उल्लेख किया कि भारत में मूर्ति पूजा का चलन जैनों द्वारा हुआ। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों के आधार पर स्थापित हो गया कि सिंधु घाटी की सभ्यता में भी मूर्ति पूजा की जाती थी, ये बहुत प्राचीन है। 

जैन धर्म का वर्तमान में प्राचीनतम ग्रन्थ जो लिपिबद्घ है, ग्रन्थ के रूप में है, उसे हम षट्खण्डागम और कषायपाहुड सूत्र के रूप में ले सकते हैं।

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