हमारी जीवनचर्या (Lifestyle) कैसी होनी चाहिए?  

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हमारी जीवनचर्या (Lifestyle) कैसी होनी चाहिए?  

माँ ने बेटे से कुछ काम करने के लिए कहा तो बेटे ने तुनकते हुए कहा- हम ही फालतू है क्या?

सवाल फालतू का है, आज फ की बात है। थोड़ी फालतू की बात करना है। सवाल है कि फालतू कौन है? किसको हम फालतू समझे। बहुत बार हम कह देते हैं कि इसने अपनी जिंदगी फालतू में बर्बाद कर दी,  इसने अपना फालतू समय खो दिया, यह तो फालतू के कामों में ही उलझता रहता है, यह बड़ा फालतू आदमी है, आपसे-हमसे कहने में आता है ना। औरों को तो हम कह देते है, फालतू कौन, फालतू को आप पसंद करते है, नहीं करते हैं ना। थोड़ा आपको देखना है कि फालतू कौन है?

चार बातें आप सबसे करूँगा- फालतू विचार, फालतू बातें, फालतू काम और फालतू खर्च।

 ये चारों काम करने वाला आदमी फालतू है। क्या कहा- फालतू विचार, फालतू बातें, फालतू खर्च और फालतू काम  करने वाला आदमी फालतू है। अब आप एक-एक करके देखिए कि मेरी स्थिति क्या है? मैं विचार से शुरू करता हूँ।  विचार करने की शक्ति हर मनुष्य के मन में है। हर मनुष्य तरह-तरह के विचार करता है और जितनी वैचारिक शक्ति मनुष्य के पास है उतनी संसार में किसी दूसरे प्राणी के पास नहीं है। विचार तो आप-हम सब करते है लेकिन थोड़ा अपने मन को देखें कि तुम्हारे मन में जो विचार आते है वो काम के आते है या फालतू के ज्यादा आते हैं। किस तरह के विचार तुम्हारे मन में पनपते है। फालतू के विचार जिसे आपने पालतू बना रखा है। फालतू के विचार मानव मस्तिष्क में घूमते रहते है। मनोवैज्ञानिक कहते है एक मनुष्य के चित्त में सुबह से शाम तक 24 घंटे में 50,000 से 70,000 विचार होते है। कितने विचार आते है- 50,000 से 70,000 विचार, एवरेज ले तो 60,000 विचार। एक मिनट  में 35 से 45 विचार, आप कल्पना कर सकते हैं। एक मिनट, 35 से 45 विचार यानी लगभग 2 सेकंड में एक विचार हमारे आते हैं। कितनी तेजी से विचारों का चक्र घूमता है। कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जो विचारों में ही खोए रहते है। जिसके लिए एक शब्द आता है- ओवर थिंकिंग, जरूरत से ज्यादा विचार करने वाले लोग जिंदगी भर परेशान होते हैं। आप अपने मन को टटोलिए और देखिए कि मेरी स्थिति क्या है? कहीं मेरा स्थान ओवर थिंकिंग करने वाले लोगों में तो नहीं है। यह क्यों हो गया, ऐसा होगा तो क्या होगा, वैसा होगा तो क्या होगा, जहाँ हो वहाँ अपना दिमाग चलाना शुरु कर देते हैं। मतलब की बातों में दिमाग लगाने का तो फिर भी अर्थ है पर फिजूल की बातों में जी उलझाने  का क्या मतलब है। कोई मतलब नहीं लेकिन आप अपने दिमाग का प्रयोग कहाँ-कहाँ नहीं करते। कुछ भी बात हो जाए, अजी! क्या करें जी, आजकल तो पूरी दुनिया की स्थिति खराब हो गई है। दुनिया में सारे अलग प्रकार के भ्रष्टाचार की बातें हो गई है। लोगों के जीवन में कोई सिस्टम ही नहीं बचा, हमारे देश की राजनीति तो फिसड्डी हो गई है। शासन का तंत्र तो एकदम गड़बड़ हो गया है। अभी क्या करें जी, मौसम का कोई रंग-ढंग नहीं दिखता है और मन में न जाने कैसे विचार और जैसे विचार वैसी बातें, होता है ना। आप देखिएगा जो अर्थहीन विचार होते हैं वे हमें बुरी तरह उलझाते भी है और प्राय: नकारात्मक होते हैं। अपने आपको इस विचारों के चक्रव्यूह से कैसे निकाले? पहले तो देखें कि मेरे अंदर फालतू के विचार आते हैं कि नहीं आते।

फालतू के विचार कैसे आते हैं, एक घटना से अपनी बात को शुरू कर रहा हूँ। एक आदमी था जो अपने घर के ओटे पर बैठकर दातुन किया करता था और ठीक उसी समय एक सांड आता था। उस सांड की जो सींग थी वो बड़े ही सुंदर, एकदम आर्च के शेप में थी ऐसी कि एक-दूसरे से मिली हुई थी। एक दिन उस सांड को देखकर उसके मन में विचार आया कि मैं इस सांड के सींग में अपनी गर्दन घुसा लूंगा तो घुसेगी कि नहीं। अब विचार का क्या? विचार तो दिमाग में घुस गया। रोज उस सांड का दर्शन करना, समय पर सांड का आना और सांड को देखते ही इसके भीतर विचारों की श्रृंखला, इस सांड के सींग में अपनी गर्दन घुसाऊंगा तो घुसेगी कि नहीं, इस सांड के सींग में अपनी गर्दन घुसाऊंगा तो घुसेगी कि नहीं, गर्दन घुसेगी कि नहीं, गर्दन घुसेगी कि नहीं। अब विचार का कीड़ा तो दिमाग में घुस गया, रोज उसका वह दातुन करना, नियत समय पर उस सांड का आना, सांड को देखते ही उसके दिमाग में विचारों की श्रृंखला शुरू हो जाना, इसके सींग में मेरी गर्दन घुसेगी कि नहीं। जितनी देर वह दातुन करता उतनी देर वह सांड और उसके वह सींग घूमते रहते। कई दिन बीत गए। जब यह रोज का एक क्रम हो गया तो एक दिन उसने सोचा कि हद हो गई। अब विचार करने की क्या जरूरत है थोड़ा ट्राई करके भी देख ले। ट्राई करने के ख्याल से उसने जैसे ही सांड के सींग में अपनी गर्दन घुसाई, फिर तो आप समझ ही सकते हो क्या हाल हुआ होगा, उसका कचूमर निकल गया होगा, हड्डी-पसली चूर हो गई होगी।

 आपको उस व्यक्ति के बारे में विचार करके हँसी आ रही होगी लेकिन अपने मन से पूछो सुबह से शाम तक कितनी बार सांड के सींग में अपनी गर्दन घुसाते हो। बिना मतलब की बातों में अपना दिमाग लगाना सांड के सींग में गर्दन ही तो घुसाना है। बोलिए! अक्सर लोग ऐसा करते हैं तो उससे नकारात्मकता हावी होती है। कई लोगों की तो ऐसी आदत होती है कि बिल्कुल खोए-खोए से रहते है, विचारों में घूमते रहते हैं। कुछ ना कुछ, कुछ ना कुछ  दिमाग में चलता रहता है, अपने-आप से बातें करते रहते हैं, यह एक बहुत बड़ी बीमारी है। ऐसे व्यक्ति कभी-कभी घोर चिंता और डिप्रेशन के भी शिकार हो जाते हैं। सोचो, उतना ही सोचो जितना सोचना है। ज्यादा सोचकर क्या होगा, जितना सोचोगे उतना ही शोकमग्न होना होगा। ऐसा हो गया तो, वैसा हो गया तो, यह हो गया तो, वह हो गया तो, जो होगा सब तुम्हारे साथ होगा ऐसा कोई नियम थोड़ी है। जो होना होगा वो तो होगा ही, विचार करो! पर उतना ही जितना कि आवश्यक है। अनावश्यक बातों में चित्त को उलझाने वाले व्यक्ति का जीवन व्यर्थ हो जाता है। वह अपने जीवन का रस नहीं ले पाता। अभी थोड़ी देर बाद में चर्चा करूंगा आपसे कि इस फालतू के विचारों पर हम नियंत्रण कैसे रखे लेकिन फालतू शब्द पर जब हम ध्यान देते हैं तो सबसे पहले हमें अपने विचारों पर अंकुश लगाना सीखना चाहिए। यदि हमारे विचार नियंत्रित होंगे तो हमारा व्यवहार नियंत्रित होगा और व्यवहार नियंत्रित होगा तो जीवन विशुद्ध बनेगा, तो विचारों को नियंत्रित करना बहुत बड़ी आवश्यकता है। विचार हमारी एक बहुत बड़ी शक्ति है। उस शक्ति को यदि हम सही दिशा में नियोजन करें तो जीवन को ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं और यदि उनका हमने सही दिशा में नियोजन नहीं किया तो उससे हमारे जीवन का पतन भी हो सकता है। विचार एक सीढ़ी है, जिस सीढ़ी से ऊपर चढा जाता है उस सीढ़ी से नीचे भी उतरा जाता है। अगर सही विचार करेंगे तो आप अपने जीवन को ऊंचाइयों तक पहुंचा देंगे और कुविचारों को अपने मन में हावी कर देंगे तो पतन को कोई रोक नहीं सकता, पतन अवश्य भावी है।

 दूसरे क्रम में है- फालतू बातें। आप देखिए लोगों की बात करने की प्रवृत्ति होती है। कई लोग ऐसे होते हैं जो इतनी आलतू-फालतू बातें करते है जिनका ना कोई सिर होता है ना पैर, एक बार शुरू हो गए तो बंद होने का नाम नहीं। बिना मतलब की बातें जिसका सिर ना पैर, लेना ना  देना, फिर भी शुरू है तो बस शुरू है। कुछ लोगों की आदत होती है एक बार शुरू हो गए तो बस हो गए। ऐसे लोगों के पास पता नहीं समय कहाँ से मिलता है। उनके पास समय भी बहुत फालतू होता है। एक बहन ने अपनी सहेली से पूछा- क्यों, आजकल तुम फालतू बातें बहुत करती हो। उसने कहा- हाँ, जिनके पास फालतू समय होता है फालतू बातें उन्ही से तो होगी। जिनके पास फालतू का समय होगा तो फालतू-फालतू में हीं लोग अपना सब कुछ बर्बाद कर देते हैं। बोलने की हमारे पास एक बहुत बड़ी शक्ति है और उस शक्ति का उपयोग भी हमें उसी अनुरूप करना चाहिए। व्यर्थ-बकवास करने वाले का कोई मूल्य नहीं होता है। आप लोग बोलते हो तो काम की बातें करो, फालतू बात मत करो। कई बार जब आप बोल देते हैं, मुँह से कुछ अनर्गल निकल जाता है तो आपके मुँह से निकलता है बेफालतू में हमने बोल दिया, फालतू में हमने बात का बतंगड़ बना दिया, बोलते है न आप, ऐसा कई बार होता है। फालतू बात करने का मतलब क्या है? अधिक बकवास करना, अर्थहीन बोलना, अनियंत्रित बोलना, असभ्य वचनों का या अप्रसंगिक बात करना, अत्यधिक बकवास करना- कुछ लोगों के साथ ऐसा होता है। उनके लिए बुंदेलखंड में एक शब्द आता है- लबरा, जो लबर, लबर करें मतलब व्यर्थ बकवास करें जिसका मतलब कुछ नहीं। बोलने की आदत होती है वो वाचालता है, इससे मनुष्य का महत्व कम हो जाता है। मैं आपसे एक सवाल करता हूँ जो आदमी बात-बात पर जरूरत से ज्यादा बोलता है आप उससे अपना व्यवहार रखना चाहते हो या नहीं। क्यों नहीं चाहते, अरे भैया! इससे बात करने का मतलब अपना समय बर्बाद करना। अगर कहीं मिल गया तो जल्दी से जल्दी पिंड छुड़ाना चाहते है। जो भी व्यक्ति फालतू की बातें करेगा वह अपने जीवन को अप्रसंगिक बना देगा, लोग उसको लाइक नहीं करेंगे, उसकी लाइकिंग कम होगी, यह सब नेचुरल है। नेचुरली ऐसा होगा। तो हमें यह देखना है कि मैं फालतू बातें तो नहीं करता, फालतू की बातें, बिना सिर-पैर की बातें, जहाँ शुरू हो गई वहाँ शुरू हो गई, यह आदत होती है। वह अपनी आदत के शिकार होकर इस तरह की बातों की एक बार शुरुआत करते बस चालू तो चालू, उसमें रुकने का नाम ही नहीं रहता, व्यर्थ की बकवास करने की आदत से बचें।

 फालतू की बातों से कैसे बचना है यह मैं आपको बताऊंगा। अभी तो मैं आपको टास्क दे रहा हूँ कि आपको करना क्या है- व्यर्थ की बातें आप मत करें। दूसरी बात- ऐसी बात जिससे बात का बतंगड़ बने। बात का बतंगड़ बनाने वाली बात ना करें, नियंत्रण हीन वचनों का प्रयोग न करें। कहीं कोई मामला ऐसा आ जाए तो उस समय इतने सधे हुए, ऐसे शब्दों का प्रयोग करें कि सामने अगर बवाल उत्पन्न होने वाला हो तो वह शांत हो जाए। ऐसे वचनों का प्रयोग न करें कि व्यर्थ में बवाल खड़ा हो जाए। आप लोग क्या करते हैं, अक्सर जो लोग पछताते है कि अरे! बेफालतू में ही हमने बोल दिया, उस समय चुप रहना था, फालतू की फसाद खड़ी कर दी। वस्तुतः यह जितनी भी चीजें है सब फालतू हैं या अर्थ पूर्ण है। काश मनुष्य को इस बात का पता होता लेकिन बकबक  करने की जिसकी आदत होती है वो इन सब बातों को नहीं समझता। वह बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देता है। बाद में सारी जिंदगी रोने को मजबूर होता है। कई बार आपके जीवन में ऐसे प्रसंग घटे होंगे जब आपको अपने बोलने का पश्चाताप हुआ होगा, हुआ है कि नहीं हुआ, क्यों? अर्थपूर्ण बात करने वाले मनुष्य को कभी पछताना नहीं पड़ता और फालतू की बात करने वालों के पास पछताने के सिवा और कुछ बचता नहीं। बिना मतलब की बात करने से अपने आप को बचाइए। सोचिए कि मेरे पास वचन की शक्ति है इसका मतलब यह नहीं कि मैं अपनी शक्ति का दुरुपयोग करुं। मुझे वही बोलना है, उतना ही बोलना है, वैसा ही बोलना है, जैसा कि आवश्यक हो, जो प्रासंगिक हो, वो ही बोलें। एक बात बोलूं अवसर के अभाव में बोले गए उचित वचन भी अनुचित लगते हैं। अवसर पर आपके द्वारा जो भी बोला वह काम का है, अवसर के अभाव में आपके द्वारा बोली गई अच्छी बात भी अच्छी नहीं लगती। मनुष्य की एक विशेषता है जो अवसर के अनुकूल संभाषण करना जानता है। अवसर के अनुरूप बोलो, क्या प्रसंग है वैसा बोलो। ऐसे व्यक्ति से हर कोई मिलना-जुलना चाहता है, उससे सलाह लेना चाहता है, उससे बात करना चाहता है। अवसर के विरुद्ध बोलोगे तो कोई तुम्हारी वैल्यू नहीं करेगा। अरे! यह तो बकबक करते रहते हैं, इन्हे तो  बोलना ही है, फालतू में चिल्लाते रहते हैं, फालतू में बोलते रहते हैं। घर-परिवार में देखिए बड़े-बुजुर्गों की इज्जत क्यों घटती है। बात-बात में टोका-टाकी, सासू है तो बहू पर चढाई, पिता है तो पुत्र पर, परिवार में कुछ ना कुछ बोलना है, अच्छा हो तो, बुरा हो तो, सही हो तो, गलत हो तो, करने योग्य हो तो और ना करने योग्य हो तो। कुछ लोगों की ऐसी आदत होती है तो उनका घर में कौनसा स्थान होता है। थोड़े दिन तक तो लोग लिहाज करते हैं लेकिन जब रोजमर्रा की जिंदगी में यही हाल होता है तो फिर लोग उसको इग्नोर करना शुरू कर देते हैं, नजरअंदाज करना शुरू कर देते है। अरे! इनकी तो आदत ही ऐसी है, इनको छोड़ो, बड़बड़ाने दो। यहाँ आपको अंकुश रखना है।

  आज मेरा प्रवचन फालतू नहीं जाएगा चिंता मत करना, बात फालतू की जरूर कर रहा हूँ, पर बात फालतू की होकर के भी कीमती है। मुझे बिना मतलब बोलना नहीं, अर्थहीन बातों का प्रयोग नहीं करना, अप्रसंगिक बातों का प्रयोग नहीं करना और ऐसे वचनों का प्रयोग नहीं करना जिससे किसी का मन आहत हो। आक्रोश पूर्ण वचन, आक्षेप पूर्ण वचन, अपमानपरक वचन और आपत्तिजनक वचनों का प्रयोग कभी मत करो। आक्रोश पूर्ण शब्द, आक्षेप पूर्ण शब्द, अपमान जनक शब्द और आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल मुख से कभी मत करो, यह सब फालतू चीजें हैं, इनसे बवंडर खड़ा होता है। आक्रोश में,  गुस्से में आप जब बोलते हो तो अच्छे शब्द निकलते है क्या? कोशिश करना चाहिए जब तुम्हारे अंदर आवेश हो और तुम अपने आपे से बाहर हो तो उस समय कम से कम बोलो। अपने आप को शांत करने की कोशिश करो। उस समय जो निकलेगा वह फालतू ही निकलेगा, सार्थक नहीं निकलेगा, अर्थ का अनर्थ करेगा, मामला बिगड़ जाएगा, व्यर्थ का बवंडर खड़ा हो जाएगा। तो आप आक्रोश नहीं करे। किसी पर सीधा आक्षेप लगाने वाला शब्द, यह सब कलह बढ़ाने वाले हैं। ऐसे शब्दों का प्रयोग जिससे सामने वाला अपने आप को अपमानित महसूस करें, तुम किसी को मान न दे सको तो चलेगा पर कभी किसी का अपमान मत करना नहीं तो बैर की गांठ बांधकर तुम्हारे लिए बड़ी समस्या पैदा कर सकता है। आपत्तिजनक शब्द- ऐसे शब्द जिससे किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा धूमिल होती हो या जो शिष्ट व्यक्तियों के द्वारा कहे जाने योग्य नहीं हो वह सब आपत्तिजनक शब्द है। ऐसे शब्द है जिसको बोलने के बाद तुम्हें क्लेरीफिकेशन देना पड़े, माफी मांगना पड़े, यह काम के वचन है या फालतू के वचन है। फालतू के है या काम के है? ये सभी वचन फालतू के है, समझ में आ रही है बात। यह वचन जब भी हमारे मुख से उच्चारित होते है पूरा मामला ही बिगड़ जाता है। कुछ मामलों में तो आप ध्यान रखते हैं और कुछ मामलों में ध्यान नहीं रखते।

 एक व्यक्ति अपने बेटे को नसीहत दे रहा था। दुकानदारी में बेटा पढ़-लिख कर आया, जब पढ़-लिख कर आया तो दुकान में बैठना शुरू किया। अब नया-नया छोरा था, ग्राहकों से ज्यादा बातचीत करता था तो उसके पिता ने उसे समझाया देख ग्राहक से काम की बात ही किया कर, फालतू की बात नहीं किया कर नहीं तो एक ही ग्राहक में पूरा दिन निकल जाएगा। नसीहत दिया- काम की बात करो फालतू की बात मत करो। आप लोग ऐसे ही करते है ना अपने प्रोफेशनल लाइफ में, जितना काम उतना काम । अब एक को छोड़कर दूसरा, दूसरे को छोड़कर तीसरा, आपके पास समय की कमी है, काम अधिक है, सामाजिक है, हमको जिससे काम लेना है उससे तो लेना है। जितने भी प्रोफेशनल आदमी होते है आप उनसे बातचीत करेंगे तो पाएंगे कि काम से काम बात किया, टू द पॉइंट बात किया और उसके बाद आगे बढ़ा। जो निठल्ले लोग होते है उनसे आपने बात करना शुरू किया तो पता नहीं कितनी बाते करने लगेंगे। कई लोग जब किसी से फोन पर जो बात करना शुरू करते हैं तो बात बंद करने का नाम ही नहीं लेते।  सबसे ज्यादा फालतू बातें तो आप लोगों को फोन पर होती है। बस शुरू हो गए तो शुरू हो गए, शुरू हो गए तो शुरू हो गए।

 एक बार मेरे कमरे में कोई सज्जन थे, उन्हें किसी का कॉल आया। कॉल आने के बाद वह बाहर गए तो करीब दस मिनट हो गया, आवाज आ रही थी कि मैं रखता हूँ, सुनो तो, सुनो तो, उनके फोन का स्पीकर ओन था, आवाज कुछ-कुछ आ रही थी, अरे सुनिए तो, अरे सुनिए तो, बार बार कहें, फिर ठीक है अभी रखता हूँ, महाराज आ रहे है। फिर प्रतिक्रिया की- अरे! फालतू में ही दिमाग चाट रही है। यह उसने प्रतिक्रिया में किया। हमने कहा- क्या बात है, भाई! किसका फोन था? महाराज! घरवाली का फोन था, क्या हो गया? वो बोले कि दिमाग चाट रही है। अरे भाई तेरे दिमाग को चाटने में तो किसी का जीभ भी नहीं लगा, क्या? महाराज क्या करें! ऐसे ही बस शुरू होती है तो बंद होने का नाम ही नहीं होता, कई बार तो मन करता है कि फोन ही नहीं उठाऊँ। आप लोगों के साथ भी ऐसा हुआ होगा जो आदमी बिना मतलब की बात करता हो आपके साथ पुराना एक्सपीरियंस जुड़ा हुआ हो उसका कॉल आए तो आप बात करना पसंद करते हो या उठाना ही पसंद नहीं करते। एक ने कहा- महाराज हम मिस कॉल उठा लेते है पर मिस कॉल नहीं उठाना चाहते। अब यह क्या है, विडंबना है कि हम देखें, हम अपनी प्रासंगिकता को खुद खोते हैं। काम है उतनी बात करो और आगे बढ़ो क्योंकि अधिक प्रलाप भी एक प्रकार की हिंसा है। हमारे यहाँ भगवान ने अहिंसा की आराधना के लिए वचनों पर संयम रखने का मार्गदर्शन देते हुए कहा-

“वाङ्गमनोगुप्ति”||

  वचनों का सीमित इस्तमाल करो, यह तुम्हारी ताकत है लेकिन यदि तुमने इसका गलत इस्तमाल करना शुरू कर दिया तो यही तुम्हारी कमजोरी भी बन जाएगी। संत कहते हैं महान वो होते हैं जो अपनी कमजोरी को ताकत बना देते हैं और वो लोग जीवन में कभी सफल नहीं होते जो अपनी ताकत को भी कमजोरी बना देते हैं। वाक् शक्ति का सदुपयोग करना सीखिए, फालतू बातें नहीं, आपत्तिजनक बातें मत करिए, अश्लील बातें मत करिए, अपमानजनक बातें मत करिए। कई बार लोग शुरू हो जाते तो पता नहीं क्या होता है। एक दूसरे के साथ आप लोगों की जितनी भी बातचीत होती है और जो सोशल मीडिया के माध्यम से आप लोगों की चेटिंग होती है वो काम की होती है या फालतू की होती है, बता दीजिए। सब फालतू की नहीं लेकिन ज्यादातर फालतू की होती है। अपना काम कीजिए, फालतू में अपना समय क्यों लगाते है। समय फालतू नहीं है, समय बहुत कीमती है। काश उसकी कीमत को समझते तो अपने जीवन की यह दुर्दशा कभी नहीं होने देते। अपने जीवन को अच्छा बनाने के लिए फालतू बातों से बचें।  

 नंबर तीन- फालतू खर्चे से बचें, जिसको बोलते फिजूल खर्च। कई लोग है जिनकी एक रुपए की कमाई है और दो रुपए खर्च करते हैं। रुपए का काम है सवा रुपया में करने की कोशिश करते हैं। यह गलत प्रवृत्ति है, इससे बचना चाहिए। आजकल ऐसा बहुत तेजी से हो रहा है। फालतू खर्च को लोग बढ़ावा देने लगे हैं, इससे घर की व्यवस्थाएं बिगड़ रही है,  बजट खराब हो रहा है। इससे अनावश्यक तनाव का शिकार होना पड़ रहा है। आप देखिए जितना आवश्यक है अपेक्षित है, जहाँ आवश्यक है, अपेक्षित है वहाँ आप खर्च कीजिए, अनावश्यक खर्च मत कीजिए। दुनिया में महान लोग वो ही होते हैं जो फालतू खर्च से बचते हैं। किसी चीज को फालतू में वेस्ट मत कीजिए, धन को भी, समय को भी, शक्ति को भी और संसाधन को भी, किसी का फालतू खर्च मत करिए, वह मिस यूज है। जहाँ आवश्यक है वहाँ  कीजिए। कई लोगों की आदत ही होती है अपनी शान, फालतू शान दिखाने के लिए अनावश्यक खर्च करते है।

 एक की धर्मपत्नी बहुत फालतू खर्च करने वाली थी, पति सहयोग से कंजूस मिल गया। पत्नी फालतू खर्च करने वाली और पति कंजूस तो क्या हाल होगा, समझ लो। एक दिन पत्नी ने अपने पति से कहा-एंबुलेंस बुलाओ, मेरे पेट में जोर का दर्द हो रहा है। जल्दी से एंबुलेंस बुलवा लो मेरे पेट में जोर का दर्द हो रहा है। उसने कहा- मैं फालतू खर्च नहीं करता मुर्दा गाड़ी ही बुलाए देता हूँ। अरे! पेट में दर्द हो रहा है तो डॉक्टर के पास जाने के लिए एंबुलेंस की क्या जरूरत है? कुछ लोग फालतू खर्च से परेशान होते है। एक व्यक्ति ने मुझसे कहा- मुंबई में जॉब करता है। वह भी जॉब करता और उसकी पत्नी भी जॉब करती है। दोनों को मिला करके 15,00,000 रुपए साल की आय थी । उसके बाद भी उसने कहा- महाराज! हालत बड़ी तंग है। बोले क्यों? क्योंकि मेरी पत्नी का हाथ खुला है। जब चाहे शॉपिंग, जब चाहे मॉल जाना, जब चाहे घूमने जाना, महाराज! हम दोनों मिल करके इतना कमाते है उसके बाद भी हमारी सेविंग नहीं है। तो भैया यह तो आपको सोचना है जो अपने स्रोत से जुड़ा हो उसका भी पानी वेस्ट करो तो एक दिन खाली हो जाता है। तो फिर जो ऊपर से ला करके भरा गया उसे व्यर्थ बहाओगे तो वह भी तो खाली होगा। जब नदियाँ ही सूख जाती है तो टंकी को खाली होने में कितनी देर, फिजूलखर्ची से बचना चाहिए। आजकल के लोगों की लाइफ स्टाइल बिल्कुल अलग हो गई है। सब फिजूलखर्ची की ओर बढ़ावा दे रहे हैं और उसके पीछे एक फैशन है- ब्रांडेड! सब चीज क्या चाहिए- ब्रांडेड चाहिए। सामान्य नहीं अगर तुम्हारे लिए दो सौ रुपए के शर्ट से काम चल रहा है तो वह नहीं चाहिए, उसमें ब्रांड नहीं लिखा, हम 2000 वाला लेंगे। यह जो गेप है ना यह बहुत ही गंभीर है।

महापुरुषों के जीवन को देखें- डॉ राजेंद्र प्रसाद, भारत के राष्ट्रपति, एक बार वह शासकीय दौरे पर रांची गए। वह रांची में थे कि अचानक उनकी चप्पल टूट गई। वह पूर्णत: शाकाहारी थे चमड़े का उपयोग नहीं करते थे। जिस स्थान पर वह थे वहाँ से चप्पल लेने के लिए किसी को भेजा गया, वह 10 किलोमीटर दूर था। 10 किलोमीटर दूर से वह चप्पल लेकर आया तो जो चप्पल आई वह उन्नीस रुपए की थी उस जमाने में। राजेंद्र बाबू 8 रुपए की चप्पल पहनते थे तो  उन्होंने तुरंत बोला कि इतनी महंगी चप्पल क्यों ले आए। लोग बोले- आप तो भारत के राष्ट्रपति है। आपके लिए यह चप्पल नही चलेगी आपके लिए यह चप्पल ठीक है। उसने कहा- मेरे देश की जनता का पैसा फालतू नहीं है। राजेंद्र बाबू ने कहा- मेरे देश की जनता का पैसा फालतू नहीं है। जब मेरा काम 8 रुपए की चप्पल से चलता है तो मैं 19 रुपए की चप्पल क्यों पहनूगा, यह चप्पल मैं नहीं पहनूंगा। उन्होने 19 रुपए की चप्पल पहनने से इनकार कर दिया। सामने वाले ने कहा- ठीक है, हम इसको वापस करके दूसरी चप्पल ले आएँगे। उन्होंने कहा-  नहीं, अभी तुम जाओगे, यहाँ से वहाँ जाओगे तो 3 रुपए का तो पेट्रोल ही लग जाएगा 10 किलोमीटर आना और जाना, कोई दिक्कत नहीं है सभा में अभी उस तरफ के लोग आएंगे तो उनके हाथ इस चप्पल को भेज देना और वापस कर देना। यह थी मितव्ययता की दृष्टि। तुम लोग, ठीक है आ रहा है कोई कमी है क्या? जम के खर्चा करो, लेकर थोड़ी जाना है साथ में, यह भी कंसेप्ट है। खूब जम के खर्च करो, लेकर थोड़ी जाना है साथ में। ध्यान रखना! यह सच है कि लेकर नहीं जाना पर बहाकर भी मत जाओ।

तुम्हारे पास पानी है तुम उसे लेकर नहीं जा सकते अच्छी बात है तो पानी को बहाकर भी मत जाओ, प्यासे को पानी पिला करके जाओ, तुम्हारा जीवन सार्थक होगा। व्यर्थ मत बहाओ उसे सार्थकता प्रदान करो। जहाँ आवश्यक हो वहाँ खर्च करो, जी खोल करके खर्च करो। जहाँ जरूरत नहीं है वहाँ  इस तरह का खर्च करने का, क्या मतलब? तुम ये ब्रांडेड-ब्रांडेड की बात करते हो कफन कभी ब्रांडेड नहीं होता, इस बात को कभी मत भूलना। कफन तो ब्रांडेड नहीं होता, बात तो वही है, आखरी में ओढ़ना तो वह ही है, वो भी तुम्हारे घरवाले उतार लेंगे चिता पर चढ़ाते समय। क्या ब्रांडेड-ब्रांडेड? इस ब्रांडेड के चक्कर में व्यक्ति का जीवन भीतर से बैंड हो गया। पूरा जीवन ही बैंड हो गया क्यों अपनी बैंड बजवा रहे हो, बदलो अपनी मानसिकता को। मैं एक चीज और देखता हूँ कि एक तरफ आप लोग अपव्यय करते है। मैं ऐसे लोगों को भी देखता हूँ जो एक तरफ अपव्यय करेंगे दूसरी तरफ सब्जी लेने जाएंगे तो 20 रुपए की सब्जी लेंगे, भिंडी तुलवाएंगे तो दो भिंडी और डाल देंगे। बोलो क्या आदत है! उस गरीब की दो भिंडी तुम एक्स्ट्रा ले रहे हो। करोड़पति व्यक्ति की भी आदत होती है कि नहीं होती। क्या बोला?  धनिया मिर्ची फ्री में लेंगे, हाँ लेंगे, वह तो लेंगे वो तो पूरण है। तुम करोड़पति हो, तुम्हारे शॉप में कोई चीज लेने आए तब तो तुम नेट-वेट करके दोगे, उसमें भी डंडी मार लो तो कोई भरोसा नहीं लेकिन उस गरीब के साथ, ऐसे लोग जो फाइव स्टार होटल में ठहरे तो वेटर को टिप देने में हजार रुपए देने में कोई संकोच ना करें। ऐसे लोग जब सब्जी लेने जाए तो उसके लिए दो भिंडी एक्स्ट्रा ले ले या धनिया की एक पोटली उठा ले। क्या मानसिकता है तुम्हारी, किस स्तर का सोच है तुम्हारा, कभी विचार किया, फालतू खर्च से बचिए।

परिवारों में खासकर नव दंपत्तियों के मध्य आपसी विवाद का एक बड़ा कारण फालतू खर्च है। मेरे साथ बहुत से ऐसे मनोचिकित्सक जुड़े है जो अपना अनुभव कहते हैं कि महाराज! जब हम लोग काउंसलिंग करते हैं तो उसमें एक बड़ा कारण भी आता है फालतू खर्च। या तो पति का हाथ खुला हो या पत्नी का हाथ ज्यादा खुला हो, इसको लेकर दोनों में बड़ी तकरार होती है और परिवार में एडजस्टमेंट बहुत कठिन होता है। फालतू खर्च की इस प्रवृति से अपने आप को बचाइए। कुरल काव्य में एक बहुत अच्छी बात लिखी है खासकर आप महिलाओं के लिए, उसमें लिखा है-  वही उत्तम सहधर्मणी है जिसमें सुपत्नित्व के समस्त गुण समाहित हो। जो अपने पति की आय से अधिक व्यय  न करती हो, फालतू खर्च से बचाती हो। आजकल समाज में फालतू खर्च का ढर्रा बढ़ गया है, विवाह शादियों और समारोहों में कितना फिजूल खर्च होता है। बर्बादी! पैसे की बर्बादी! अंधाधुंध लोग खर्च कर रहे है, पानी की तरह पैसा बहाते हैं। सारा पैसा कहाँ जाता है- कैटरिंग में जाता है, होटलों में जाता है और कोरियोग्राफर ले जाता है। यह बर्बादी है,  यह वेस्टेज है। अपने संसाधनों का इस तरह मिस यूज करना एक प्रकार का अपराध है। अभी मुझे कुछ दिन पहले एक व्यक्ति ने जानकारी दी जो बहुत अनुकरणीय जानकारी है। सिख-पंजाबी समाज में एक निर्णय लिया जिसमें उनका जो सर्वोच्च संगठन – अकाल तख्त और दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी की संयुक्त बैठक हुई। उसमे उन्होंने यह निर्णय लिया कि विवाहों में फिजूल खर्च नहीं होगा, कोई भी फालतू खर्च नहीं होगा। सारे विवाह संबंध गुरुद्वारे से होंगे और हमारी कमेटी तय करेगी कि भोजन का मीनू क्या होना है, कितना मीठा बनना है, कितनी सब्जियाँ बननी है यह तय करेगी। उसके जो अध्यक्ष है दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के उन्होने तो यह तय किया कि हम अपने बच्चे के घर की शादी में कार्ड भी नहीं छापेंगे, ईमेल और ई-कार्ड के माध्यम से अपना काम करेंगे। यह एक सोच है। उसके लिए उन्होंने जन-जागरण शुरु कर दिया। यह समाचार सारे देश में प्रसारित हुआ। आप सोचिए! पंजाब केसरी में छपा था कुछ दिन पहले की घटना है यह। यह एक अनुकरणीय पहल है, इस बारे में लोगों को सोचना चाहिए कि आज तुम्हारे पास संपन्नता है इसका मतलब यह नहीं कि तुम अपने पैसे की बर्बादी करो, तुम संपन्न हो तो तुम्हें यह देखना चाहिए कि हमारे देश में कैसे कितने-कितने लोग है जिनके पास दो वक्त के खाने की रोटी की व्यवस्था भी नहीं है। हम पैसा क्यों बर्बाद करें? मेरे पास पैसा है तो क्यों ना मैं उसका सदुपयोग करके एक अच्छा आदर्श उपस्थित करुँ।  

मैंने अभी दो साल पहले सुना था कि अपने ही समाज के एक बंधु ने अपने बेटे की शादी में, कोई समारोह ना करके सौ बेघर परिवारों को घर देने का उपकरण किया था, कितना बड़ा काम किया। सुना होगा, अखबारों में भी आया होगा। अपने ही समाज के एक श्वेतांबर बंधु थे, गुजरात के थे, ये एक उदाहरण है।  तुम करोड़ो रुपया पानी की तरह बहा दोगे उस शादी की कोई चर्चा नहीं होगी लेकिन जिस व्यक्ति ने यह अनुकरणीय पहल की, शताब्दियों तक उसका नाम लिया जाएगा और जिनको घर मिला उनकी दुआएं प्राप्त करेगा। फालतू खर्च से बचिए,  अपने आपको मोड़िए, अच्छे कार्य में कोई संकोच नहीं, अब बुरे कार्य के लिए कुछ सोचो भी नहीं। यहाँ संकोच नहीं वहाँ सोच नहीं, तब जीवन का उत्कर्ष होगा। फालतू विचार, फालतू बातें, फालतू खर्च और फालतू काम– बिना मतलब का काम है।  कुछ लोग है जो फालतू कामों में उलझे रहते हैं जिसका कोई लेना नहीं, कोई देना नहीं, बस इधर-उधर डोलते हैं।  फालतू काम मुझे नहीं करना है, जो जरूरी है वही काम करना है। एक बार एक भाई ने कहा-कि महाराज हमारे पिताजी को समझाओ। हमने बोला- बोलो! क्या बात हो गई। वो बोले- बस सुबह से शाम तक कुछ ना कुछ, कुछ ना कुछ करते ही रहेंगे। कुछ नहीं तो नौकर-चाकर से ही काम कराते रहेंगे, यह करो, वह करो, यहाँ से साफ करो, जाला साफ करो, यह करो, वह करो। महाराज! उनको बोलो कि अपना समय निकालकर धरम-ध्यान में लगे इन सब कामों में ना लगे।  आदत हो जाती है व्यर्थ की मगजमारी करने की, इस आदत पर नियंत्रण आवश्यक है और अपेक्षित है। फालतू काम करने की आदत बंद कीजिए और फालतू चीजों से काम लेने का अभ्यास बढ़ाइए। कुछ लोग होते है जो फालतू का काम करते हैं और कुछ लोग होते हैं जो फालतू पड़ी चीजों को भी काम में ले लेते हैं। मैंने एक जगह देखा वीरायतन गया राजगृही में, साध्वी चंदना जी है। वहाँ मैंने देखा तो वहाँ की इंटीरियर और एक्सटीरियर में जो कुछ भी चीजें लगाई गई वो सब फालतू पड़ी हुई चीजों से जैसे नारियल की खोपड़ी जैसी चीज को इतने सलीके से सजाया कि देखकर के उसका एक अलग ही आकर्षण दिखाई दिया। जो चीजें कबाड़ में पड़ी हो, जो एकदम फालतू और व्यर्थ हो अगर व्यक्ति की सोच रचनात्मक हो तो उस फालतू की चीज से भी काम का चीज बना सकता है। उन्हें  सजा दिया और देखा तो लगा कि आकर्षण! तो मैं तुमसे कहता हूँ कि फालतू का काम करना बंद करो और फालतू की चीजों को भी काम में लेना सीख जाओ तो जीवन तुम्हारा उत्कृष्ट हो जाएगा, ऊंचाइयाँ प्राप्त कर लेगा। अब बात हो रही है मैंने अभी कहा-था कि इन सबसे बचे कैसे?

सबसे पहली आवश्यकता है- विचारों की शुद्धि की, मन में फालतू विचार आते है, फालतू विचारों से और फालतू व्यवहार से अपने आप को बचाना चाहते है तो कुछ टिप्स में आपको दे रहा हूँ। यह आदत है और आदतन आप ऐसा करते है। इस आदत को आप तभी सुधार पाएंगे, इस पर अंकुश तभी लग पाएगा जब आप इसके प्रति कुछ गंभीर हो। तो क्या करें मैं आपको बताना चाहता हूँ। यह सब विचार आते क्यों है? व्यक्ति या तो अपने भविष्य की चिंता करता है तो फालतू विचार आते है, अतीत की बातों में उलझा रहता तो फालतू विचार आते है, इनसिक्योरिटी का भाव होता है तो फालतू के विचार आते है, मन की जो इच्छाएं है वह व्यक्त नहीं हो पाती, अप्रकट रह जाती तो फालतू के विचार आते है। बहुत सारे कारण है। मैं निवारण की बात आपसे करता हूँ। सबसे पहला काम कीजिए- प्रेक्टिकल करना शुरु कीजिए, प्रतिदिन अपना पुनरावलोकन शुरू कीजिए। पुनरावलोकन- पुनरावलोकन का मतलब शाम-रात सोने से कुछ देर पहले आप बैठकर अथवा लेटकर सुबह से सोने के पहले तक के कृत्य कार्यों को, विचार को याद करिए। एक बार उनको देखिए, अपने सारे विचारों पर अपनी दृष्टि डालिए। उन्हें देखें कि यह जो विचार थे कितने अर्थ पूर्ण थे या व्यर्थ थे। अपना एनालिसिस कीजिए, अंतर विश्लेषण कीजिए और जो-जो गलत विचार हमने किए उन विचारों के प्रति अपने मन में ग्लानि का भाव रखते हुए मन ही मन संकल्प कीजिए- आज से इन विचारों को मैं छोड़ता हूँ, इन विचारों को मैं छोड़ता हूँ। यदि यह अभ्यास आपका हो जाएगा नियमित, आप ऐसा करना शुरू करेंगे तो आप पाएंगे कि धीरे-धीरे आपके विचारों की शुद्धि की शुरुआत हो गई है। जो विचारों का अनावश्यक प्रवाह आपके चित्त  में हावी होता है वह कम होगा। जैन-साधना में इसे ही प्रतिक्रमण कहा है जो हमारे भाव शुद्धि का एक विशेष माध्यम है। अपने अंदर जो भी ऐसे विचार आए है मैं उन विचारों के प्रति अपनी ग्लानि व्यक्त करते हुए निंदा-गृहा करता हूँ और उनकी पुनरावृत्ति न करने का मन ही मन संकल्प लेता हूँ। यह अपने विचार शुद्धि का एक कारण है।

दूसरा जो हमारे अंदर इस तरह के विचार और व्यवहार में आते है वह सब चीजें क्यों आती है? क्योंकि हमारे सबकॉन्शस माइंड में वो सब बातें दबी हुई है, जो बातें हमारे सबकॉन्शस माइंड में दबी रहेगी  वह जब तक दबी रहेगी, बाहर नहीं निकलेगी, हमारे अंदर इस तरह का अंतर्द्वंद बना रहेगा। जो चीजें आप नहीं चाहोगे वह ही आपके पास आएगी, जो चीजें आप नहीं चाहोगे वह ही आपके पास आएगी। तो उन विचारों को व्यक्त करिए, व्यक्त करिए यानी उसको आप किसी से शेयर कर दीजिए, जो बातें आपके अंदर दमित है, चल रही है, योग्य व्यक्ति के पास जाकर के शेयर कर दीजिए, कहीं नहीं तो प्रभु के दरबार में जाकर अपने हृदय के उद्गार प्रकट कर दीजिए। उन बातों को, सबकॉन्शस माइंड की बात को कॉन्शस में आ जाने दीजिए। धीरे-धीरे वह अंतर्द्वंद शांत हो जाएगा, आपके चित्त पर फिर वह बातें हावी नहीं होगी।

तीसरी बात अपने अंदर का कचरा निकालिए। यानि अपने भीतर की जो भी इस प्रकार की विकृतियाँ है, बुराइयाँ है उन्हें बाहर निकालिए। मैं इनको छोड़ता हूँ, मैं इनको छोड़ता हूँ,  मैं इनको छोड़ता हूँ। मनोविज्ञान के पंडित यह बातें आज बताते है लेकिन हम लोगों की साधना में यह बहुत प्राचीन काल से है। हम जो प्रतिक्रमण करते है तो हम लोगों के लिए कहा-जाता है अच्छाई को मैं ग्रहण करता हूँ  और बुराई को मैं छोड़ता हूँ।तो यह एक साधना है जो विचार तुम पर हावी हो रहे मैं उन्हें छोड़ता हूँ और जो मुझे स्वीकार करना है उसे मैं ग्रहण करता हूँ, ऐसा अभ्यास करो। लेकिन उल्टा हो जाता है, हम जो छोड़ने योग्य हैं उसको ग्रहण करते है और ग्रहण करने योग्य चीजों को छोड़ते हैं। आप अभ्यास कीजिए फालतू की बातों में आपका दिमाग उलझना बंद होगा।

नंबर चार महत्वपूर्ण है- दिमाग में कचरा डालना बंद कर दीजिए। दिमाग में कचरा डालना बंद कर दीजिए। सफाई भी करो और कचरा भी डालो तो क्या होगा? आप व्यर्थ की बातों को अपने दिमाग में बहुत भर लेते है। एकदम कचरा आपके दिमाग में भर जाता है। न जाने क्या-क्या आपके दिमाग में आता है। आजकल आपके दिमाग में कचरा क्या होता है, अभी आपने अपने मन को जैसे-तैसे शांत किया कि TV खोल करके बैठ गए है। क्या परोसा गया वहाँ पर?  बेफिजूल की बातें! खासकर यह जितने भी खबरिया चैनल है, ये सब नकारात्मक बातें ही तो परोसते हैं। आप सोशल मीडिया खोल करके बैठ गए, WhatsApp खोल करके बैठ गए, Facebook खोल करके बैठ गए, Twitter खोलकर बैठ गए और पता नहीं क्या-क्या खोलते है आप। उनसे जो इंफॉर्मेशनस आप सब को मिल रही है, वह क्या सकारात्मक है या नकारात्मक। मैं आप सब से कहता हूँ कि भोजन का उपवास करो या ना करो इन नकारात्मक बातों का उपवास करना शुरू कर दो। न्यूज़ फास्टिंग शुरू कर दो, देखो जीवन में कितना परिवर्तन होगा। आप लोग सुबह से ही अपने अंदर नकारात्मकता भर लेते हो तो विचारों का द्वंद उत्पन्न नहीं होगा तो क्या होगा। आप सुबह उठते हो सबसे पहले TV ऑन होता है और न्यूज़ चालू कर देते हो तो क्या सुनने को मिलता है-  3 मरे, 13 घायल। यह ही सुनते हो ना तीन-तेरह ही चलता रहता है तो जिंदगी में क्या होगा। यह नेगेटिविटी जो आपके मन-मस्तिष्क में जब तक भरती रहेगी तब तक ना आपका विचार शुद्ध होगा ना बर्ताव शुद्ध होगा। आपके द्वारा किए जाने वाले सारे काम फालतू हो जाएंगे और जिनके काम फालतू होंगे उनकी जिंदगी भी फालतू हो जाएगी।

अपनी जिंदगी को फालतू होने से बचाइए। सही दिशा में काम करने की कोशिश कीजिए तो हमारा जीवन सार्थक होगा। इसलिए की बात है- फालतू से बचें, फालतू विचार से बचें, फालतू बातों से बचे, फालतू खर्च से बचें और फालतू काम से बचें ताकि आपकी जिंदगी फालतू होने से बच सकें, आप अपने जीवन को सफल और सार्थक बना सके। इसी स्वभाव के साथ एक बात और भी बीच में जोड़ रहा हूँ-  जब आपके दिमाग में बहुत ज्यादा विचारों का प्रवाह होने लगे तो आप थोड़ा प्राणायाम करने का अभ्यास करो, प्रभु के गीत गुनगुनाने का अभ्यास करो, कुछ अच्छा सुनने की कोशिश करो, कुछ अच्छा पढ़ने लग जाओ, आपका मन शांत होगा। आप विचारों के इस द्वंद से अपने आपको बचा सकेंगे। लोगों के अंदर बहुत ज्यादा विचारों का रेला आता है उससे कई बार लोग बड़े विचलित हो जाते है। अपने आप को बचाइए, विचारों को शांत कीजिए। अपने जीवन को सही दिशा में आगे बढ़ाइए, जीवन का पूर्ण लाभ उठाइए।

 

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