*जोड़ना संग्रह है और जोड़कर उससे चिपक जाना परिग्रह है।
*धन का संग्रह करना भी समाज के कल्याण के लिए बाँध का निर्माण करने के समान है। इसलिए धन का संग्रह करो, पर बाँध की भाँति करो।
*जहाँ केवल संग्रह है वहाँ खारापन है और जहाँ वितरण है वहाँ मिठास है।
*भाग्यलक्ष्मी के साथ पुण्यलक्ष्मी को बढ़ाना है, पापलक्ष्मी के रास्ते पर कतई नहीं जाना है और अभिशप्तलक्ष्मी के अधिकारी तो कभी बनना ही नहीं है।
*परिग्रह का संचय करके विग्रह में उलझकर अपने जीवन को बर्बादी के कगार पर नहीं पहुचना है।
*संग्रह करो, साथ में अपने भीतर उदारता और अनुग्रह का समावेश भी करो।
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