शंका
घटनाओं पर प्रतिक्रियाएँ किस कर्मोदय से?
समाधान
हमने कह दिया कुछ कह दिया और बाद में सोचते हैं कि ऐसा हमने क्यों कह दिया? १४८ कर्म में ऐसा कोई कर्म हमको देखने में नहीं मिला जिससे हम कहें कि PARTICULARLY ऐसा कर्म कर सकते हैं। पर मुझे ऐसा लगता है कि जिनके अंदर ‘अधीरता और अविवेक’ नामक कर्म का उदय होता है वह ऐसा करते हैं। और बाद में पश्चाताप करते हैं। इसीलिए अपनी कषायों को शांत करो। और अधीरता और अविवेक को दूर करने का उपाय, धैर्य और विवेक से काम करो। बोलने के पहले सोचो, बोलने के बाद नहीं।
सोच कहे सो सूर है और कह सोचे सो धूर।
इसलिए सोच करके कहिए, कह कर के मत सोचिए। धैर्य अभ्यास कीजिए, धीरज का अभ्यास कीजिए, अधीरता का नहीं।
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