क्या जीवन में घटनाएँ पाप-पुण्य के कारण होती है?

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शंका

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ छोटी-छोटी घटनाएँ ऐसी होती हैं जिनके प्रभाव बहुत बड़े होते हैं। हम २० व्यक्तियों की लाइन में खड़े होते हैं, १९ व्यक्तियों को टिकट मिल जाता है, हमारी छोटी-छोटी घटनाएँ हमारे जीवन को काफी बुरी तरह से प्रभावित कर देती हैं। क्या ऐसी घटनाओं का प्रभाव पाप और पुण्य से होता है?

समाधान

पाप और पुण्य इसमें कारण है। प्राय: हम सब बातों को पाप-पुण्य पर डाल देते हैं। पाप-पुण्य से भी बड़ा होता है-संयोग। 

लोग कहते हैं जिसके पास जितना पुण्य होता है, उसके पास उतना वैभव होता है। देखा भी जाता है, बढ़िया घर, एकदम पॉश कॉलोनी में बड़ा मकान, टॉप क्लास की गाड़ियाँ, नौकर-चाकर, सब ठाट-बाट, सब पुण्य से मिला। जिनके पास नहीं है उनके लिए हम कहते हैं, ‘यह उनके पाप का उदय है।’ अब मेरे पास कुछ भी नहीं है, तो क्या मेरे पाप का उदय है? मेरे पास क्या है? घर है? मकान है? गाड़ी है? घोड़ा है? बंगला है? कुछ भी नहीं है। पर हाँ! घर, मकान, गाड़ी, घोड़ा और बंगला वाले, मेरे पीछे ज़रूर घूम रहे हैं। मेरे पास तो नहीं है, मानोगे मेरे पाप का उदय? अगर पुण्य ने यह वैभव दिया, तो मेरे साथ वह वैभव क्यों नहीं? मैं उत्तर देता हूँ -पुण्य तो मेरे पास है, पुण्य ने वैभव नहीं दिया, पुण्य ने मुझे दिया है संयोग। तुमने अपने संयोग का प्रयोग किया मकान बनाने में, गाड़ी-घोड़ा लाने में, ठाट-बाट बढ़ाने में, अपने पुण्य के संयोग का उपयोग किया; और मैंने अपने जीवन के संयोग का उपयोग किया, अपने जीवन को पुण्यमय बनाने में। अन्तर इतना आ गया कि एक पुण्य के बल पर भोगों में रत हो गया और दूसरे ने पुण्य का उपयोग किया अपने भीतर पूज्यता प्रकट करने में। पुण्य तो था तुम्हारा, पर तुम्हारा प्रमाद साथ में रहा। टिकट तुम्हें लेनी थी, तुमने कहा कि ठीक मेरे टाइम में सामने वाले को चाय पीनी थी, तो तुम पहले नंबर पर क्यों नहीं लगे, जाने में लेट क्यों हो गए? यहाँ भाग्य को कोसते हो, अपने प्रमाद को सुधारने की चेष्टा नहीं करते। इसलिए मैं दो बातें कहता हूँ-जब भी कोई कार्य करो अपना सर्वश्रेष्ठ दो, खासकर अच्छे कार्यों के लिए तो सर्वश्रेष्ठ ही होना चाहिए। भगवान सर्वश्रेष्ठ हैं, तो सर्वश्रेष्ठ के चरणों में जब तुम अपना सर्वश्रेष्ठ लगाओगे, तभी सर्वश्रेष्ठ पाओगे। उसमें प्रमाद नहीं होना चाहिए, किसी प्रकार की कमी नहीं होनी चाहिए। यदि सब कुछ करने के बाद भी सफलता न मिले, मन हताश होने लगे तो सोचना चाहिए, ‘शायद मेरा भाग्य अनुकूल नहीं।’

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