क्या मुनि साथ में प्रतिमा रख सकते हैं?

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शंका

कई मुनिराज साथ में प्रतिमा रखते हैं, और कई मुनिराज प्रतिमा नहीं रखते हैं। जो प्रतिमा जी नहीं रखते है और विहार करते हैं उनको दर्शन नहीं होते हैं तो क्या उन्हें दोष लगता है?

समाधान

आचार्य कुन्दकुन्द महाराज ने मुनियों को खुद दर्शन कहा है और मुनि मुद्रा को ही प्रतिमा कहा है। जिसके दर्शन से दूसरों का सम्यक् दर्शन पुष्ट हो जाये या जिसके दर्शन से दूसरों का दर्शन फल जाये उसको दर्शन की क्या ज़रूरत है? मुनि को ही आचार्य कुन्दकुन्द ने जिन मुद्रा की प्रतिमा कहा है। ये चैत्य, चलती-फिरती प्रतिमा है। इसलिए मुनिराजों को जिन प्रतिमा साथ रखने का कोई शास्त्रीय विधान नहीं है। जो रखते है वे रखें, लेकिन आगम में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है। प्रतिमा रखने की व्यवस्था, चैत्यालय को चलाने वाले एक आदमी की व्यवस्था, कई जगह गाड़ियों में चैत्यालय चलता है, कई जगह सिर पर चैत्यालय लेकर चला जाता है, तो इन सब का औचित्य नहीं है। 

कुछ लोग कहते हैं कि जो मुनियों के साथ श्रावक रहते हैं उनके लिए तो सही है। यदि पिच्छीधारी आपके साथ हैं, आपने उनके दर्शन कर लिए तो आपके दर्शन का नियम पल गया, ऐसा समझना चाहिए। उसके लिए अलग से कुछ नहीं है। आचार्य कुन्द कुन्द ने लिखा है कि जिनेन्द्र भगवान का रूप, आर्यिकाओं का रूप और एेलकों का रूप- ये दर्शन है!;जिससे मोक्ष मार्ग दिखे उसका नाम दर्शन है। आचार्य कुन्द कुन्द कहते हैं जो मोक्ष मार्ग को दिखाये, सम्यक्त्व को दिखाये, संयम को दिखाये, सुधर्म को दिखाये, जो निग्रंथ और ज्ञानमय है वही जिन धर्म में दर्शन है। इसलिए उसे अन्य किसी दर्शन की अनिवार्यता नहीं है।

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