बड़े लोग मन्दिर नहीं जाते, बच्चें उन्हें कैसे समझाएँ?

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शंका

महाराज जी! आप हमेशा कहते हैं कि बच्चों को मन्दिर जाना चाहिए पर जो बड़े नहीं आते उनका क्या? जब हम उन्हें कहते हैं कि आप मन्दिर जाया करें, वे हमेशा कहते हैं कि हमारे पास टाइम नहीं हैं। आप उनके बारे में क्या कहना चाहेंगे?

समाधान

निश्चित बच्चों को अगर धर्म से जुड़ने की बात कही‌ जाए तो गौरव की बात होती है और यदि बड़ों को धर्म से जुड़ने के लिए यदि बच्चों को कहना पड़े तो यह लज्जा की बात है। जो यह कहते हैं कि हमारे पास मन्दिर जाने के लिए समय नहीं है, मैं समझता हूँ उनके पास खुद के लिए भी समय नहीं है। समय तो हमारे हाथ में है, जब मन्दिर व्यक्ति की प्राथमिकता की सूची में पहले स्थान पर आ जाएगा तब व्यक्ति कितना भी व्यस्त हो, मन्दिर जाने लगेगा।

मैंने एक व्यक्ति से पूछा- “तुम्हारे घर से मन्दिर कितनी दूर है?” बोला- “ढाई किलोमीटर”। मैंने पूछा- “तुम्हारा ऑफिस कितनी दूर है?” बोला- “पाँच किलोमीटर।” मैंने पूछा- “ऑफिस रोज जाते हो?” वो बोला- “ऑफिस तो रोज जाना पड़ता है क्योंकि वह जरूरी है।” मैंने कहा- “जिस दिन तुम यह सोच लोगे कि ऑफिस से भी ज्यादा जरूरी भगवान का मन्दिर है, तो ढाई किलो मीटर भी तुम्हारे लिए पास हो जाएगा और तुम रोज जाने लगोगे”। श्रद्धा जगे और हमारी प्राथमिकता में प्रथम स्थान प्राप्त करें।

मुझे अपनी दिनचर्या में भगवान का दर्शन-वन्दन अनिवार्यतः करना है, भगवान की सेवा-पूजा अवश्य करनी है, यह अवधारणा यदि मन में स्थापित हो जाए तो उस व्यक्ति को कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन जिनकी भगवान पर श्रद्धा ही नहीं, जिनका लगाव नहीं या जो धर्म से जुड़ाव रखना ही नहीं चाहते उनसे यह बातें जुदा है। मैं तो कहता हूँ फिर भी बच्चों को रोज़-रोज़ कहना चाहिए कि “आप मन्दिर क्यों नहीं जाते? आप नहीं जाओगे तो हमें क्या संस्कार दोगे? हम तो आपसे प्रेरणा लेना चाहते हैं। आप हमारे आदर्श होने चाहिए पर आप में तो उल्टा दिख रहा है। पापा! कम से कम से कम ऐसा मत करिए अपने ख़ातिर ना सही, कम से कम बच्चों का तो ख्याल रखिए। तो आपको भी अच्छा लगेगा हमको भी अच्छा लगेगा। हम मन्दिर जाते हैं और जब हमसे कोई पूछता है तुम्हारे पापा मन्दिर नहीं आते तो हमारी आँखें शर्म से झुक जाती हैं। पापा कम से कम हमारी शर्म का तो ख्याल करो।” वे जरूर सुधर जाएँगे।

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