साजिशों से कैसे बचें?

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शंका

कहीं पढ़ा था कि ‘अपनी काबिलियत को इतना बढ़ाओ कि आपको पराजित करने के लिए लोगों को कोशिश नहीं, साजिश करनी पड़े।’ रामायण और महाभारत इसका बड़ा उत्कर्ष उदाहरण है कि हमेशा साजिशें अपने ही लोग करते आये हैं। क्या यह साजिश है जो अपने लोग करते हैं? अपनों की साजिश से किस तरह से बचा जाए?

समाधान

अगर आप कामयाबी की रास्ते पर चले, तय मान करके चलना, आपको पीछे धकेलने की कोशिशें भी होंगी और साजिशें भी होंगी। लेकिन जो कामयाबी के रास्ते पर चल निकलता है, जिसे अपने ऊपर भरोसा होता है और कुछ करने का जज्बा होता है, जो अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होता है, वो इन सब बातों की अनदेखी करके चलता है। जब इनकी अनदेखी करता है तभी चल पाता है। 

पहली बात तो यह कहूँगा कि जो अपने अन्दर काबिलियत को विकसित करना चाहते हैं, अपने जीवन को आगे बढ़ाना चाहते हैं, ऊँचाई तक पहुँचना चाहते हैं वह दूसरों की तरफ न देखें। अपनी सारी शक्ति आगे बढ़ने में लगाएं, अपनी गति को और प्रगति के पथ पर बढ़ाने की कोशिश करें। रहा सवाल पीछे धकेलने की कोशिश और साजिश का, ये होगा। भाई ये संसार है, नियम है सबके साथ ऐसा होता है। पर कैसी भी साजिश हो घबराए नहीं, अपने पाँव को आप इतना मजबूत बना लें कि कोई उसे कितना भी खींचने की कोशिश क्यों न करे, वह हिला न सके। हम अपनी ताकत मजबूत करेंगे, सारी चीजें तो ऐसी होंगी। साजिशकर्ता तो दुनिया में हमेशा से हैं, खलनायकों की कभी कमी नहीं होती, हर युग में रहे हैं, हमें उनसे प्रभावित नहीं होना है। उसे एक चुनौती मान करके स्वीकारना है, दृढ़ता से सामना करके उस चुनौती को उपलब्धि में परिवर्तित कर देना है। जितनी जितनी साजिश हो उस घड़ी में भी तुम सामान्य बने रहो। देखो, उन की साजिश तुम्हारे जीवन की सज्जा बन जाएगी, तुम्हें और ऊँचा उठा देगी। ये जीवन की उन्नति का कारण बनेगी। 

कई बार हम सोचने लगते हैं ‘ऐसी साजिश हो रही है, ऐसा कुचक्र हो रहा है’, तो हमारे अन्दर की नकारात्मकता बढ़ने लगती है और उस घड़ी में हम अपना खुद का मानसिक सन्तुलन भी खो बैठते हैं और कई कई बार इसी नकारात्मक भावना के कारण जो नहीं होना होता, वह भी हो जाता है। मैं यह नहीं कहता कि आपके ऊपर कोई साजिश करे तो आप कुछ सोचना ही नहीं। साजिशों के प्रति सतर्क रहो पर साजिशों से घबराओ मत। जब आपने चलना शुरू किया है तो पहले से मान करके चलो कि मेरे पीठ के पीछे क्या-क्या होने वाला है। चलो, जब युद्ध के मैदान में उतरे हो तो तलवार भी रखो, ढाल भी रखो। जो सामने आए सामना करते चलो, आगे चलते चलो, आगे चलते चलो, कहीं कोई कठिनाई नहीं।

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