राग द्वेष कैसे छोड़ें?

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शंका

राग द्वेष कैसे छोड़ें?

समाधान

राग द्वेष कैसे छोड़ें ! हमारे आचार्य गुरुदेव विहार कर रहे थे, उनका विहार तो अनियत होता है; रास्ते में लंबी यात्रा थी तो विहार करते करते एक पेड़ के नीचे छाया में बैठ गए, गर्मी का दिन था। एक विद्वान थे, डॉक्टर अनिल जैन, जो जैन जगत के वरिष्ठ विद्वानों की श्रेणी में गिने जाते है; उन्होंने एक स्मरण लिखा, मैं उसे सुना रहा हूं कि वो आचार्य गुरुदेव के दर्शन के लिए सुबह से काफी व्याकुल थे, कहां है? कहां है? महाराज जी काफी आंतरिक स्थान पर थे, काफी देर खोजने के बाद पेड़ के नीचे बैठे दिखाई पड़े। उन्होंने अपनी गाड़ी रोकी, उनके पास बैठे, तत्व चर्चा करने लगे और तत्व चर्चा करते करते उसी क्रम में उन्होंने पूछा- महाराज जी! राग कैसे छूटता है? आचार्य महाराज ने झट से अपनी पिच्छी उठाई, कमंडल उठाया, चल दिये और कहा – “ऐसे छूटता है राग !”

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