मधुबन (शिखरजी) का संरक्षण कैसे करें?

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शंका

मैं आज भारत के सारे तीर्थों का दौरा कर रहा हूँ लेकिन गुरुवर, तीर्थों की रक्षा हमारे बस में नहीं है। तीर्थों की रक्षा के लिए हम श्रावक काबिल नहीं है। आज मैं सम्मेद शिखर की पूरी यात्रा करके आया हूँ। ऊपर की वन्दना करके आया हूँ। कहाँ के रास्ते में कहाँ क्या कार्य होना बाकी है, ताकि यात्रियों को पूरी वन्दना में कष्ट न हो, ये देखा, लेकिन सामर्थ्य कहाँ है? हम ऐसा महसूस करते हैं कि यदि पूरे भारत की दिगम्बर जैन समाज, समस्त जैन समाज यदि मधुबन को, शाश्वत मोक्ष धाम को, पूरे भारत वर्ष के नक्शे में उसके सही रूप में नहीं बैठा पाये, तो शायद आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ नहीं कर सकेंगी। गुरुवर कैसे हम रक्षण करें? मधुबन को क्या रूप दें? भारतवर्ष के राष्ट्रीय नक्शे में, झारखण्ड के नक्शे में मधुबन की क्या स्थिति हो?

समाधान

आपने बहुत गम्भीर विषय छेड़ा है। तीर्थ हमारी संस्कृति के सबसे बड़े सम्वाहक तत्त्व हैं, धरोहर हैं, और इन तीर्थों से ही हमें सच्ची प्रेरणा मिलती है, मार्ग मिलता है। इसलिए तीर्थों का संरक्षण, और सम्वर्धन तो प्रत्येक जिन भक्त का अपना दायित्व है। तीर्थों के विकास के लिए काफी कुछ काम हुए हैं। अभी बहुत सारे काम की आवश्यकता भी है। यथा सम्भव काम करने की जरूरत है। विभिन्न क्षेत्रों की विभिन्न प्रकार की समस्याएँ हैं, और उनके विकास के लिए आवश्यक अलग-अलग कार्य भी हैं। चूँकि आपने विषय छेड़ा है, इसलिए आपसे दो-तीन बातें सभी तीर्थ क्षेत्रों के विषय में करना चाहूँगा और फिर इस तीर्थाधिराज के विषय में जो दृष्टि चाही है उस सन्दर्भ में भी कहना चाहूँगा। 

भारत वर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी काफी उत्साह के साथ क्षेत्रों के विकास में लगी हुई है, लेकिन कमेटी अकेले विकास नहीं कर सकती है जब तक समाज उसमें सहयोगी न बने। तो सबसे पहली बात तो ये है कि लोगों में तीर्थयात्राओं की प्रवृत्तियाँ बढ़ें। जब भी आप हो सके तीर्थयात्रा की प्रवृत्ति बढ़ायें। यद्यपि ये प्रवृत्तियाँ बढ़ी हैं, पर इसमें और वृद्धि होनी चाहिए। आप जिस किसी भी तीर्थक्षेत्र में जाये वहाँ की मूलभूत समस्याओं से रूबरू हों और उनके लिए सलाह नहीं, सहयोग देना शुरू करें। तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा के लिए जब, भी आप जाएँ अपना अधिकतम पैसा अपनी सुख सुविधाओं में खर्च करने की जगह, उसे बचाकर क्षेत्रों के विकास में अर्पित करें, तो आप तीर्थक्षेत्रों के संरक्षण में काफी अहम भूमिका निभा सकते हैं। 

मैं देखता हूँ कि लोग तीर्थ यात्रा में जाते नहीं है, और जो लोग जाते हैं वो पूरी बारात लेकर के जाते हैं। बहुत से ऐसे लोग है जो तीर्थ यात्राएँ कराते है। १००-५०० का ग्रुप लेकर के जाते है और उसमें लाखों रुपया खर्च कर देते हैं। एक सज्जन जो बड़ी यात्रा को लेकर के गये उनके साथ काफी लोग थे और उन्होंने लाखों रुपया खर्चा किया। लगभग २५-३० लाख रुपये खर्चा किया। पूरी यात्रा करके लौटने के बाद सब ने प्रशंसा की। बहुत अच्छी यात्रा करायी, हमारी हर सुख सुविधा का ख्याल किया, बारातियों की तरह हमें लेकर के गये। हमने पूछा कि पूरी यात्रा के दौरान दान कितने का किया? तो बताया कि ३० लाख के खर्च में दान सिर्फ डेढ (१.५) लाख का हुआ। हमने कहा ये क्या? ये तो गलत है। ये परम्परा गलत है। तीर्थयात्राएँ कराइये, लेकिन उन्हें तीर्थयात्री बनाकर ले जाइये, बाराती बनाकर नहीं। इससे पुण्योपार्जन नहीं होगा। पाप में पैसा जा रहा है। हर तीर्थ क्षेत्र में जाओ वहाँ पूजन करो, विधान करो, वन्दना करो, एकासन करके आप अपनी यात्रा को सार्थक करो। संयम साधना का पालन करो, जिससे इस तीर्थ यात्रा के बाद तुम्हारे जीवन में एक बड़ा बदलाव घटित हो। जो पैसे का wastage (अपव्यय) है उसे हटाएँ और हर तीर्थ क्षेत्र में जहाँ जरूरी है वहाँ दें। मैं तो ये कहता हूँ कि और दिनों के खान-पान की अपेक्षा तीर्थ यात्रा का खान-पान सादा होना चाहिए। आप लोगों का समय वेस्ट हो जाता है खाने पीने में। खाना चालू रहता है सुबह से लेकर रात तक; तुम तीर्थ यात्रा कर रहे हो या मौज मस्ती? 

जो भाई बन्धु तीर्थ यात्रा करवाना चाहते हैं, मैं उनसे कहता हूँ, तीर्थ यात्रा बहुत अच्छा कार्य है, कराओ, लेकिन सादगी के साथ कराओ। खुद दान दो और आपके साथ जितने लोग जा रहे हैं उनको भी प्रेरणा दो, की तीर्थ क्षेत्र में हमको दान करना है, और जिस तीर्थ क्षेत्र की व्यवस्थाएँ अनुकूल न दिखें, वहाँ तो चल चलकर एक-एक को देख-देख कर उनका पैसा निकलवाओ। मैं ये कहता हूँ कि आप तीर्थ यात्रा करें। तीर्थ यात्रा में जाकर फ़िजूल खर्ची न करें। हो सके तो तीर्थ क्षेत्र के विकास में अपना जो उत्कृष्ट हो वो लगा सके तो लगायें, और वहाँ जो भी कमियाँ हैं, उसे दूर करने का भरसक प्रयास करें। लोगों को तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा के लिए प्रेरणा दें। तीर्थों में कहीं भी गंदगी न फैलाएँ। उसकी पवित्रता को कायम रखें। अगर ऐसा करते हैं तो हमारे सारे उपेक्षित तीर्थ क्षेत्र विकसित होंगे। अपने यात्रा के क्रम में प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्रों के साथ-साथ उन तीर्थ क्षेत्रों को भी अवश्य रखें जहाँ यात्रियों की आवाजाही कम है। जहाँ प्रसिद्धि है वहाँ तो लाइन लगती ही है। जहाँ कोई नहीं जानता, वहाँ आवाजाही कम होती है। तो हर तीर्थयात्री अपने हर यात्रा के क्रम में एक दो क्षेत्र ऐसे जरूर चुनें जो उपेक्षित हों। वहाँ के लिए समय निकालकर, विशेष ध्यान दें तो ये तीर्थों के विकास में, मेरी समझ में, अच्छी पहल होगी।

तीर्थराज का सवाल जहाँ तक है ये तो हमारा शिरोमणि तीर्थ है। मैंने कहा था कि ये एक तीर्थ है जिसे जैनियों का “vatican city” (वैटिकन सिटी) बनना चाहिए था। दुर्भाग्य है कि हमारे पूर्वजों ने आपस में लड़ झगड़ कर अपनी शक्ति को बर्बाद कर दिया। सौ-दो वर्ष पहले ये पहल होती तो आज सम्मेद शिखर जी की छटा “वेटिकन सिटी” से बढ़कर ही होती, कमजोर नहीं होती। बहुत कुछ खो गया, लेकिन अभी भी बहुत कुछ बचा है। इसे अगर लोग चाहें तो बचा सकते हैं। पर्वत पर वन्दना में आने-जाने वाले लोगों की पूर्ण सहूलियत होनी चाहिए। पिछले दिनों हम लोगों ने कई घटनाएँ सुनी हैं। तीर्थक्षेत्रों में, धर्म स्थलों में भगदड़ मचने से कई लोगों को काल का ग्रास बनना पडा है। पहले से कुछ सोच कर के ऐसे जो स्थान है, जहाँ भगदड़ होने पर समस्याएँ हो सकती हैं, सरकार से मिलकर के वहाँ हमें दोनों तरफ के रास्ते बनाने चाहिए। ताकि किसी भी आपात स्थिति में बचा जा सकें। यात्रियों को चढ़ने उतरने में जो असुविधा होती है आपने उस पर पूरा ध्यान भी दिया, और इन दिनों तीर्थक्षेत्र कमेटी ने बहुत अच्छा काम भी किया है। शीतलनाला से डाकबंगला तक जैसी सड़क है, शीतल नाला के नीचे की भी वैसी ही सड़क होनी चाहिए। ये प्रयास हो रहा है और इसे शीघ्रता से करना चाहिए। 

पर्वत पर गंदगी न फैले इसके लिए जागरूकता का अभियान चलाना चाहिए। मैं यात्रियों से कहना चाहता हूँ कि सम्मेद शिखर पर ऊपर जाओ तो कोई भी कचरा फेंको मत। बल्कि उधर किसी ने फेंका है, तो उसे लेकर के अपने साथ आओ। इस तीर्थ क्षेत्र की पवित्रता को बनाये रखने में प्रत्येक जैनी की नैतिक ज़िम्मेदारी है। ये आपको वहाँ बनाकर रखना चाहिए। इस पूरे मधुबन को प्रदूषण मुक्त, भुखमरी मुक्त, बेकारी मुक्त, अशिक्षा मुक्त बस्ती बनाने का प्रयास करें। जब मैं यहाँ आया था तो मुझे ऐसा नहीं लगा कि मैं कहाँ गया। आज सड़क बन गयी, बिजली आ गयी, पानी आ गया आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हुई। अभी यहाँ बहुत -बहुत आवश्यकता है। यहाँ का इन्फ्रास्ट्रक्चर ठीक करने की जरूरत है, ताकि यहाँ आने वाले लोगों को लगे कि ये जैनियों का कोई तीर्थ है। मैं जब सम्मेद शिखर की यात्रा के लिए आ रहा था, तो मैंने सारनाथ देखा जो बौद्धों का कितना बड़ा सर्किट है, बौद्ध गया देखा वो कितना बड़ा सर्किट बना हुआ है। लेकिन हमारे सम्मेद शिखर का कोई हिसाब किताब नहीं। इसको डेव्हलप करना चाहिए और संयोगतः अच्छी सरकार आयी है। लोगों की ऐसी धारणा है कि सरकार के माध्यम से काफी कुछ किया जा सकता है। देशभर की पूरी समाज को सामूहिक पहल करके इस क्षेत्र के विकास के लिए आगे आना चाहिए, ताकि यहाँ का विकास हो, यहाँ की जनता का विकास हो। पूरे मधुबन को, जो हमारे गुरूदेव ने कभी कहा था, गुणायतन के सन्दर्भ में आशीर्वाद देते हुए कि, वृन्दावन बनाना है। वो पहल आप सब को करनी है। वही एक सपना है। ताकि लोगों को स्वस्थ, शिक्षित, संस्कारीत, समृद्ध शाकाहारी बनाकर धर्म की स्थाई प्रभावना कर सके। ऐसा प्रयास करना चाहिए। लेकिन इस प्रयास के लिए यात्रियों को भी बहुत-बहुत सहयोग देने की आवश्यकता होगी। आज यात्रियों में जागरूकता नहीं है क्षेत्र की पवित्रता को बनाये रखने की ज़िम्मेदारी आपकी है। आपको उन तमाम कृत्यों से बचना चाहिए जिससे हमारा क्षेत्र अपवित्र होगा।

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