क्या सम्मेद शिखर की चतुर्थ काल और अभी पंचम काल की ऊँचाई और आंतरों में कोई फर्क है?
चतुर्थकाल में सम्मेद शिखर एक डग में पूरा हो जायेगा। ५०० सौ धनुष की जिनकी अवगाहना हो- ५०० धनुष यानि २ हजार हाथ, २ हजार हाथ मतलब कि ३० हजार फीट, ३००० फीट की ऊँचाई होगी भगवान आदिनाथ की! आज सम्मेद शिखर जी समुद्र के लेवल से ४४, ४८० फीट ऊँचा है। यहाँ से करीब १५०० फीट नीचे होगा, तो उनका तो सिर टकराता होगा। ४५० धनुष के अजित नाथ भगवान थे। उस काल में ये पर्वत राज बहुत विस्तीर्ण था इसका विस्तार १२ योजन का बताया गया है। जो आज एक योजन भी नहीं बचा है। चार कोस का एक योजन बताते हैं। १२ योजन इसका विस्तार था बल्कि इसकी ऊँचाई भी इसके अनुपात में थी। अच्छा है कि हम लोग भी छोटे हुए तो पर्वत भी छोटा हो गया, नहीं तो नौ किलोमीटर में ही पस्त हो जाते हैं यदि नौ योजन होता तो पता नहीं क्या होता ऊपर से ही ‘ऊपर’ पहुँचना हो जाता।
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