अष्टान्हिका पर्व का महत्व

261 261 admin

अष्टान्हिका पर्व का महत्व

अष्टान्हिका पर्व क्या?

इसे शाश्वत पर्व भी कहा जाता है यह एक तीर्थ यात्रा का पर्व है। भगवान महावीर को समर्पित यह पर्व जैन धर्म के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है। हमारे धर्म में मनाया जाने वाला यह पर्व विशेष स्थान रखता है। आठ दिन का यह पर्व वर्ष में तीन बार मनाया जाता है। आषाढ़ (जून-जुलाई), कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) एवं फ़ाल्गुन माह (फरवरी-मार्च) में इस पर्व को मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान कई जगहों पर मंदिर जी में सिद्धचक्र विधान भी आयोजित किये जाते हैं।

अष्टान्हिका पर्व कैसे मनाए?

अष्टान्हिका पर्व में श्रावक को घर छोड़कर किसी तीर्थ स्थल पर जाकर यह त्योहार मनाना चाहिए। क्योंकि जो आनंद तीर्थ स्थानों में है वो कहीं नही। तीर्थ स्थान पर जाकर श्रावक घर की सारी चिंताओं को छोड़कर तीर्थस्थान का भरपूर आनंद ले सकता है। ऐसे कहा जाता है कि अष्टान्हिका पर्व के दौरान देवता भी इस त्योहार को मनाते हैं। श्रावक को इस पर्व के दौरान नित्य प्रतिदिन देव दर्शन, पूजा-अर्चना और श्री जी का अभिषेक करना चाहिए। रात्रि भोजन का त्याग एवं व्रत-उपवास भी करना चाहिए। हमें कम से कम इस शाश्वत पर्व के दौरान श्रावक के मूलगुणों का पालन करना चाहिए।

अष्टान्हिका पर्व का महत्व?

जिस प्रकार पर्युषण पर्व का महत्व बताया गया है उससे कहीं ज्यादा अष्टान्हिका पर्व का महत्व बताया गया है। पर्युषण पर्व को एक आध्यात्मिक और पवित्र पर्व कहा गया है। इन पूरे आठ दिनों में जैन धर्म का पालन करने वाले श्रावक ध्यान एवं आत्मा की शुद्धि के लिए कठिन तप व्रत आदि करते हैं। इस समय किसी भी प्रकार की विधियों से बुरी आदतों से,बुरे विचारों से अपने को मुक्त किये जाने का प्रयास किया जाता है। अष्टान्हिका पर्व में सिद्ध चक्र महामण्डल विधान का एक महत्वपूर्ण स्थान बताया गया है।

Edited by Payal Jain Ratodia, Udaipur

Share

Leave a Reply