पुण्य और पाप का पुरुषार्थ पर प्रभाव!

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शंका

पाप और पुण्य से जीवन में अच्छा और बुरा सब क्रियाएँ हुआ करती है। उस समय हमें कुछ अच्छा करने के लिए पुरुषार्थ करना होता है, तो पुण्य की बॅकिंग में जब पुरुषार्थ करते हैं तो अच्छा होता है। एक व्यक्ति यह कहता है कि मैं जब भी कुछ भी कैसा भी व्यापार करता हूँ तो मुझे नुकसान हो जाता है। अब उसे क्या यह कह दिया जाए कि वह पाप की बॅकिंग में पुरुषार्थ कर रहा है इसलिए यह होता ही रहेगा तो पुरुषार्थ करना बंद कर दे या फिर क्या करे वह?

समाधान

यह बात सही है मैंने कई बार कहा है कि कार्य की सफलता के लिए पुण्य की बेकिंग में पुरुषार्थ चाहिए। कोई आदमी कितना भी पुरुषार्थ करें, अगर उसका पुण्य कमजोर है, तो उसे वांछित परिणाम नहीं मिलते और कितना भी पुण्य का उदय हो अगर वह व्यक्ति पुरुषार्थ न करें तो वह पिछड़ जाता है, तो हमारे पास पुण्य ने क्षमता दी। बात को समझो, पुण्य ने क्षमता दी या टैलेंट दिया और उस टैलेंट का उपयोग आप करोगे तब न लाभ ले पाओगे। एक आदमी एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी पर्सनालिटी है, उसके पास है क्षमता, बहुत अच्छा वक्ता है, इतना बढ़िया मोटीवेटर है कि पूरी दुनिया को हिला दे और अपने घर तक सीमित होकर रह जाए, उसका सही उपयोग न करें तो क्या जिस मुकाम तक वह पहुँच सकता है, पहुँचेगा? क्षमता थी उसके पास, उपयोग नहीं किया, बोलने की इतनी जबरदस्त कला, मौन लेकर बैठ गया। तुम्हारे पास इतनी पुण्याई है कि तुम जिसको जो सलाह दो वो हो जाए। बहुत अच्छा कंसल्टेंसी दे सकते हो, आफिस में ही नहीं जाओ, कुछ मिलेगा? नहीं मिलेगा। खूब बढ़िया मार्केटिंग कर दी, बड़े-बड़े इश्तहार छपवा दिए, विज्ञापन निकलवा दिया, बाजार में कुछ एजेंट भी घुमा दिया, सबसे टॉप मोटीवेटर और जब माईक के सामने आया तो २ शब्द नहीं निकले, बोलने का, अक्ल ही नहीं है, अक्ल से पैदल है, तो क्या होगा? उसका पुरुषार्थ उसे परिणाम देगा? फाइव स्टार ऑफिस बना लिया कंसल्टेंसी के लिए, पता लगा हुनर है ही नहीं, कोई पूछेगा? बहुत बढ़िया डॉक्टर है, अच्छा, लंदन से पढ़ कर आया, पता लगा फर्जी डिग्री है, आता कुछ नहीं है, कितने दिन पेशेंट को बेवकूफ बनाएगा? बात समझ में आ गई, इसे समझिये। पुण्य क्षमता देता है और पुरुषार्थ क्षमता को उपलब्धि में परिवर्तित करता है, तो पुण्य की बेकिंग में जब पुरुषार्थ करें तो सफलता मिलती है। कई बार जो आपने सवाल उठाया कि कोई व्यक्ति लगातार पुरुषार्थ करता है फिर भी विफलतायें आती है इसकी वजह क्या है? क्या उसके पुण्य की क्षीणता है या तीव्र पाप का उदय? दोनों प्रकार की संभावनाएँ हैं, पुरुषार्थ कर रहा है, पुण्य पतला पड़ रहा है, कमजोर पड़ रहा है परिणाम नहीं आएगा। एक ही काम में दो आदमी लग रहा है, एक व्यक्ति ने अभी मेरे से कहा कि महाराजजी मेरे कंस्ट्रक्शन का काम है और पिछले दिनों से आजकल तो ऑनलाइन टेंडर हो रहे हैं। ६ महीने से कोई टेंडर ही हाथ में नहीं लगता और मेरा भाई जो टेंडर देता सब निकल जाता है क्यों? बोले महाराज कितना ही सोचता हूँ तो मेरा लोएस्ट आता ही नहीं है। हमने पूछा भैया लोएस्ट क्यों नहीं आता? बोले महाराज जी रेट कोट करने में हिम्मत नहीं कर पाता। अब इसमें मेरा पुण्य है कि पाप? लालच भी कभी-कभी पुण्य को मन्द कर देती है। हमने कहा भैया जरूरत से ज़्यादा कमाने की चाह रखोगे तो क्या तुम को लाभ मिलेगा? एक आदमी ने बहुत बढ़िया शोरूम खोला, डबल रेट लगा दिया, उसकी दुकान चलेगी क्या? अब दुकान नहीं चल रही, मेरा पुण्य कमजोर हो गया। अपने पुण्य की कमजोरी से दुकान नहीं चल रही कि नीति निपुणता के अभाव में नहीं चल रही है, समझे। कर्म सिद्धान्त को व्यावहारिक स्तर पर समझने के लिए हमें कई एँगल से देखने की जरूरत है। कहीं लालच, कहीं भय, कहीं आशंका, कहीं दबाव-प्रभाव चलते हुए पुण्य की रफ्तार को कमजोर करते हैं, व्यक्ति को वांछित सफलता नहीं मिलती। आज की भाषा में अगर कहे तो व्यक्ति के अन्दर की नकारात्मकता उसे पीछे धकेलती है। अगर ऐसा व्यक्ति अपने भीतर सकारात्मकता ले आए और अपनी क्षमता का भरपूर उपयोग करें और पुरुषार्थ को राइट डायरेक्शन में करें, सफलता भी मिल सकती है। जिस व्यक्ति को लगातार पराभवों का सामना करना पड़ रहा है, विफलता का सामना करना पड़ रहा है पर्याप्त पुरुषार्थ करने के बाद भी तो मैं यह नहीं कहूँगा कि उसके पाप का उदय है या पुण्य की क्षीणता है, मैं यह कहूँगा उसके चित्त की दुर्बलता इसमें कारण बन सकती है। दूसरा अब दो व्यक्ति समान चल रहे हैं तो कहीं पुण्य की क्षीणता भी कारण हो जाती है। चौका लगा रहे १० जन, एक के यहाँ आहार हो गया एक के यहाँ आहार नहीं हुआ, जिसके यहाँ आहार हुआ उसका तो पुण्य प्रबल है जिसके यहाँ आहार नहीं हुआ वो पापी है? बोलो? नहीं। लोग कह देते हैं ऐसा। 

एक घटना सुनाता हूँ बहुत अच्छा टॉपिक आया है, लोगों का ब्रेन वाश होना चाहिये। मैं एक स्थान पर था, दो महाराज थे, २० चौके थे और दोनों के आहार होते-होते लगभग २० दिन हो जाते थे। संयोग क्या बना, एक चौके में हम दोनों का आहार ४ दिन में हो गया और उसके पड़ोसी का चौका १८ दिन से खाली जा रहा था। दोनों में एक के भी नहीं हो पाए, संयोग और एक के यहाँ चार दिन में दोनों के आहार। अब उसने क्या बोल दिया पापियों के यहाँ आहार थोड़ी होते हैं और जले में नमक। वो मेरे पास आईं और फूट-फूट के रोने लगी। हमने पूछा क्या मामला तो उसके साथ वाली महिला ने कहा महाराज जी ऐसी-ऐसी घटना हो गई और उन्होंने कहा पापियों के आहार थोड़ी होते हैं। क्या बात हो गई, ऐसी बात है। हमने कहा तुम चिन्ता मत करो, तुम पापी नहीं, पापी तो वो है जो सब अनुकूलता होने के बाद भी चौका नहीं लगा पा रहा है। तुमने सुबह से साधु को आहार दान देने का भाव रखा, तुमसे बड़ा पुण्य आत्मा कोई नहीं होगा, अपने आप को पापी मत गिनो। हमने कहा चिन्ता नहीं करो, अब पुण्य का उदय आ जाएगा। अगले दिन मैं सीधे उसी के चौके में गया और मेरे साथ वाले भी महाराज आ गए, छप्पर फाड़ के आ गये। अब ये संयोग है इसमें किसी के यहाँ हुआ, किसी के नहीं हुआ, ये पुण्य की स्पर्धा है। जो डोमिनेट होगा वह कर लेगा, तुम्हारा पुण्य पतला पड़ गया। अब महाराज आ गये, अन्तराय हो गया, आ गये-लौट गए, पाप का उदय आ गया। बात समझ रहे हैं तो जीवन में जब भी इस तरह की विफलतायें आयें, पाप-पुण्य को हर अर्थ में समझना। केवल पुण्य- पाप पर भरोसा मत करना, अपनी क्षमता का भरपूर उपयोग करना और जब तक अन्तिम सम्भावना शेष रहे, हार मत मानना। पाजिटिव बनना, मुझे क्या करना है यह देखना, मैं क्या कर सकता हूँ यह मत सोचना, तब जीवन में सफल होंगे।

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