एक ही रसोई में वेज-नॉनवेज भोजन कतई उचित नहीं

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शंका

एक ही रसोई में वेज-नॉनवेज भोजन कतई उचित नहीं

समाधान

देखिये, आपने बहुत गहरी बात करी। मैं एक घटना सुनाता हूँ। 

मेरे संपर्क में एक व्यक्ति जो एक बड़ी कंपनी में सरकारी कंपनी में उच्चाधिकारी के पोस्ट पर पदस्थ है। शुद्ध संस्कारीत जीव। अपने विद्यार्थी जीवन में उसने कभी किसी भी प्रकार के अभक्ष्य, यानी जमीकंद तक का सेवन नहीं किया, इस प्रकार का जीव। अब कार्य क्षेत्र में आया। कॉलेज के बाद थोड़ा जमीकंद का सेवन करने लगा। जब वह अपने कंपनी में वो शामिल हुवा, कंपनी में शामिल होने की घड़ी में उसके साथ एक दिन बड़ी भयानक दुर्घटना घटी। वह कोई क्लब में था, क्लब का सदस्य था। और उसमें वेज नॉनवेज दोनों एक ही मैस में बने थे। यद्यपि वेज वालों की व्यवस्था अलग थी और नॉनवेज वालों की व्यवस्था अलग। और कहते हैं, वहाँ लिट्टी चोखा के नाम पर कोई आइटम बना। तो उसमें आलू का भुरता भी होता है। और उसने आलू के भुरता के नाम पर जो सामने चीज थी लिया, और खा लिया। उसको पता नहीं। बाद में उसे तुरंत मालूम पड़ा यह तो कीमा था। घोर आत्मग्लानि हुई। सब उल्टी कर दिया वहीं तत क्षण। भयंकर वेदना। यह उदहारण है और उसके बाद आप सोच सकते हैं, उस व्यक्ति के ऊपर क्या बीती होगी। तो जो व्यक्ति जहाँ वेज नॉनवेज दोनों एक साथ बनते है, वहाँ भोजन करते हैं उन्हें बहुत सोचना चाहियें। कभी भी आप इस तरह की दुर्घटना के शिकार हो सकते हैं। 

दूसरी बात ऐसा करने से आप की ग्लानि नष्ट होगी। आप भोजन कर रहे हैं और बगल में कोई व्यक्ति इस तरह का अशुद्ध पदार्थ खा रहा है, उसे देख कर आप की ग्लानि खतम। जबकि जैन दर्शन में ऐसा कहा गया है  कि अगर कोई श्रावक भोजन कर रहा हो उसे गीला चमड़ा दिख जाए रक्त दिख जाए माँस दिख जाए तो अंतराय कर देना चाहिए। आप भोजन कर रहे हैं और आप के बगल में बैठा हुआ व्यक्ति उस तरह की चीजें खा रहा है जिसका छूना भी निषिद्ध है तो आपकी ग्लानि कहाँ बचेगी। और आपकी ग्लानि खत्म हो जाएगी तो कल ऐसी चीजों के सेवन करने में भी आपको दिक्कत नही होगी।

दूसरा नुकसान जब इस तरह के क्लब और सोसाइटीज में आप लोग जाते हैं, तो आपके साथ आपके बच्चे भी जाते हैं। आपके अंदर तो आपके संस्कार फिर भी सुदृढ़ है, माँ बाप की कृपा से। लेकिन आपके बच्चों के ऊपर उतना संस्कार नहीं। क्योंकि आप ऐसे लोग प्रायः ऐसी जगह में रहते हैं, जहाँ न समाज है, ना मंदिर है, ना मुनि महाराज हैं। और माँ-बाप अपने कार्यों में इतने व्यस्त और प्रायः पति पत्नी दोनों काम में जाने वाले होते हैं। उन बच्चों को धार्मिक संस्कार नहीं मिल पाते। और ऐसे बच्चे जब ऐसे समारोहों में बार बार शामिल है और इस तरह का वातावरण देखते है तो धीरे-धीरे उनकी ग्लानि खत्म हो जाती है। और उनका मन उनपर चल जाता है। आज आप भले परहेज कर रहे हैं, कल आपसे आँख बचाकर वह ऐसी चीजों का वह सेवन कर ले तो भी कोई आश्चर्य की बात नहीं। 

इसलिए सबको चाहिए कि वह सब सभा सोसाइटी को अटेंड करें कोई बुराई नहीं। लेकिन अपने खाने-पीने की मर्यादा को सुरक्षित रखें। अगर आप किसी क्लब से जुड़ते भी हैं तो उसमें खाने पीने पर परहेज करें। एक बार एक ने कहा अपनी पत्नी की तरफ शिकायत करते हुए कि महाराज हम लोगों को पैसा लगता है, और जिस दिन भी कोई पार्टी होती है पत्नी घर में खाना ही नहीं बनाएंगे। तो वहाँ जाना पड़ता है मजबूरी में। तो बिल्कुल गलत बात है। या तो आप ऐसी पहल करें ताकि लोग आप लोगों के लिए आप जैसे शाकाहारीओं के लिए अलग अवस्था करें आप वहाँ भोजन कर लो। लेकिन जहाँ एक साथ दोनों की व्यवस्थाएं होती है उसमें शामिल होना कतई उचित नहीं है।

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