चौबीस समवसरण महामंडल विधान का रूप क्या होता है?

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शंका

चौबीस समवसरण विधान का महत्त्व बताइए और चौबीस समवसरण होंगे चौबीस सौधर्म इन्द्र होंगे तो क्या चौबीस महाराज जी होंगे?

समाधान

ये चौबीस समवसरण महामंडल विधान का रूप क्या होगा? उसका रूप अभी हम बता देंगे तो अभी वहाँ सब बैठ जायेंगे। मैं दो कारणों से उसका रूप अभी नहीं बता रहा हूँ। रूप बताऊँगा तो कहीं ज़्यादा लोग आ जायेंगे, तब तो यहाँ व्यवस्था बिगड़ जायेगी। काफी लोग इस विधान में शामिल हो रहे हैं। आयोजक भी पूरी तत्परता से लगे हुये हैं। जो लक्ष्य था यहाँ की समिति का, उससे दो गुना लोगों ने पंजीकरण करा लिया है, लेकिन फिर भी इस समिति के लोग, विनोद जी और इस विधान के जो संयोजक हैं कन्हैया लाल जी सेठी कहते हैं, जितने हैं उतने और आ जायेंगे तो भी हम व्यवस्था सम्भाल लेंगे, कोई चिन्ता की बात नहीं। 

मैंने तो कहा था कि समवसरण में असंख्यात मनुष्य तिर्यंच एक साथ बिना एक दूसरे को छुए रह लेते हैं। ये समवसरण है सब समा जायेंगे। ये चौबीस समवसरण महामंडल विधान है जहाँ एक साथ चौबीस समवशरणों की रचना होगी और प्रत्येक समवसरण में चार-चार जिन बिम्ब विराजमान होंगे। सामने जहाँ विधान होना है वहाँ आप जाकर देखेंगे वहाँ उसकी आपको एक झलक दिख जायेगी क्योंकि समवसरण के निर्माण की प्रक्रिया चालू हो गयी। रहा सवाल चौबीस समवसरण एक साथ रहेंगे तो क्या चौबीस सौधर्म इन्द्र रहेंगे? चौबीस महाराज होंगे? जब समवसरण चौबीस होंगे तो सब चौबीस होंगे। 

एक बार मुझसे एक ने पूछा कि महाराज एक साथ चौबीस चक्रवर्ती कैसे होते हैं? एक कल्पकाल में बारह ही चक्रवर्ती ही होते हैं? चौबीस की बात कैसे कह दी गयी। जब एक साथ चौबीस समवसरण नहीं हो सकते। एक साथ दो तीर्थंकर नहीं हो सकते। तो जब एक साथ दो तीर्थंकर नहीं हो सकते तो समवसरण भी नहीं हो सकते। हम चौबीस समवसरण बना रहे हैं यानि कल्पना से बना रहे हैं। चौबीस समवसरण किसी काल में एक साथ नहीं लगेंगे। लेकिन हमारे पास इतनी ताकत है कि हम एक साथ लगा सकते हैं और जब चौबीस समवसरण लगायेंगे तो चौबीस सौधर्म इन्द्र बन जायेंगे तो जितने चाहेंगे सब बन जायेंगे। एक समवसरण में बैठकर भगवान की पूजा अर्चना करने का शुभ अवसर मिलेगा। हमें पता नहीं हमने पूर्व जन्म में कभी साक्षात् भगवान के समवसरण में जाने का सौभाग्य पाया है या नहीं। मुझे तो लगता है कि शायद नहीं पाया है। ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि समवसरण में जाने वाले पुण्यवान जीव के श्रीमण्डप भूमि में पहुँचकर पूजा अर्चना करने वाला केवल सम्यक्दृष्टि जीव होता है, मिथ्या दृष्टि नहीं। 

मैं एक बात कहता हूँ; हम लोग जरूर भगवान के समवसरण में शामिल नहीं हुए क्योंकि समवसरण में गए होते और श्रीमण्डप भूमि में पहुँचे होते तो सम्यक्दृष्टि हो गए होते। यदि सम्यक्दृष्टि हो गए होते तो पंचमकाल में भरत क्षेत्र में पैदा ही नहीं हुए होते। हम विदेह क्षेत्र में होते जहाँ पर मोक्ष की सामग्री है। जा नहीं पाए तो कोई बात नहीं भगवान ने हमें ऐसा मार्ग बताया कि जहाँ तुम अपनी ताकत से नहीं अपने भावों से जा सकते हो। हम समवसरण नहीं देख पाए लेकिन समवसरण की रचना करके अपने आपको समवसरण में शामिल कर सकते हैं। उसका पूर्ण आनन्द ले सकते हैं, इसलिए आनन्द आप लीजिए। जीवन में ऐसे प्रसंग बहुत मुश्किल से मिलते हैं। जिनको भी अनुकूलताऐं बन रही हैं, इस अवसर का लाभ लेना चाहिए।

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