पुण्यानुबन्धी पुण्य-पाप और पापानुबन्धी पुण्य-पाप में क्या अंतर हैं?
पुण्यानुबंधी पुण्य वह पुण्य है जिसके उदय में व्यक्ति अपने मन की बुद्धि को निर्मल बनाकर, उसे नए पुण्य के उपार्जन में लगाए। ऐसे पुण्य को पुण्यानुबंधी पुण्य कहते हैं। इसके विपरीत पापानुबन्धी पुण्य है, जिसके उदय में व्यक्ति अपनी बुद्धि को विकृत कर उसे भोगासर करता है और दुर्गति का पात्र बनाता है। पापानुबन्धी पुण्य ऐसा पुण्य है जिसके उदय में व्यक्ति पुण्य कमाता है और पापानुबन्धी पुण्य ऐसा पुण्य है जिसमें व्यक्ति पाप कमाता है।
आप ने पूछा पुण्यानुबन्धी पाप; कुछ पाप की क्रियाएं ऐसी होती हैं जो धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए करते हैं। वे क्रियाएं पाप की हैं, पर वे बाँधती पुण्य को हैं। शूकर शेर से लड़ा था, मुनिराज की रक्षा के लिए और उसने पाप किया पर पुण्य बाँधा। इसको बोलते हैं पुण्यानुबन्धी पाप! ऐसा पाप जो केवल पाप के लिए किया जाता है उसको बोलते हैं पापानुबन्धी पाप!
जो पाप धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए निमित्त अल्प अंश में होता है, वह पुण्य बन्ध का कारण होता है और जो पाप केवल पाप के लिए होता है वह जीवन के सन्ताप का कारण बनता है उसे पापानुबन्धी पाप कहते हैं।
गुरुवर कोटिशः नमोऽस्तु,
गुरुवर बडे़ पुण्य से इंदौर को आपके सानिध्य में चतुर्मास का अवसर मिला है। इस अवसर पर आपके चरणों में निवेदन रखता हूँ। इंदौर क्षेत्र में लगभग डेढ़ सौ जिनालय है। हर वर्ष चातुर्मास भव्यता के साथ पूर्ण होता है। अनेक प्रांत से भक्तगण आकर धर्म लाभ लेते हैं। ऐसे में यात्रियों को ठहरने के लिए यथायोग्य समाज का आतिथ्य भवन न होने के कारण लाजों का सहारा लेना पडता है इसमें उनका धर्म नहीं सध पाता है। अतः आपका सामर्थ्य है कि आपसमाज को प्रेरित कर आतिथ्य भवन आचार्य भगवन श्रीविद्यासागर की स्मृति में समर्पित हो सके। चिरकाल तक चातुर्मास स्मरण रहे। इसके साथ आपके सानिध्य में धर्म रक्षा संगठन गणमान्य का हो जो समाज के लोगों द्वारा संसकृति और धर्म के विरुद्ध कार्यकर कुरीतियों को स्थापित कर रहे हैं। जैसे विधवा विधुर परिचय सम्मेलन, विजातीय विवाह। समाज में छूत रोग सा फैल रहा है। संगठन द्वारा सामन्जस्य बना कर इन तत्वों पर रोक लगावे। यह कार्य हो जावे तो समाज पर उपकार होगा। नमोऽस्तु भगवन