त्यागी व्रतियों को देख कर हमारे भाव कैसे हों?

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शंका

त्यागी व्रतियों को देख कर हमारे भाव कैसे हों?

समाधान

मनुष्य के भीतर अचिन्त्य शक्ति है और शक्ति को जगाया जा सकता है, शक्ति को विकसित किया जा सकता है। मनुष्य के मन में जब तक अपने शरीर के प्रति मोह होता है वह अपने शरीर में रहने वाली शक्ति को जगा नहीं पाता। मोहासक्त व्यक्ति के जीवन में छोटी-छोटी बातें भी बहुत गहराई से प्रभावित करती हैं। जैसे सुकुमाल महाराज को, जब वह गृहस्थ थे एक सरसों का दाना भी चुभता था लेकिन उन्हीं सुकुमाल महाराज को जब वैराग्य हुआ तो स्यालिनी का दंश भी नहीं चुभा। कहाँ से आई शक्ति? क्या संस्थान बदल गया, सहनन बदल गया, क्या बदला? बाहर से कुछ भी नहीं बदला पर उनकी मनोदशा बदल गई और सब कुछ परिवर्तित हो गया। इसी तरह मनुष्य अपने अन्दर की शक्ति को जगाता है, तो उसके भीतर अपार क्षमतायें विकसित होने लगती हैं। शांतिसागर जी महाराज महान मुनिराज थे और उन्होंने अपने जीवन में घोर तपस्या की। आपने बिल्कुल ठीक कहा कि उनके साधु जीवन में औसतन ४ दिन में ३ दिन उपवास तो १ दिन आहार-पानी का रहा। अद्भुत उनकी क्षमता थी और उनसे प्रेरणा लेकर के व्यक्ति अपनी शक्ति को जगा सकता है, जगाने का प्रयास करना चाहिये। यदि उतना नहीं कर सको तो जितना बन सके, करो तो! शान्तिसागर जी महाराज का जीवन-चरित्र चारित्र चक्रवर्ती के रूप में प्रकाशित है, हर व्यक्ति को जरूर पढ़ना चाहिए, वह आपके जीवन के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा बनेगा।

कोई व्यक्ति यदि व्रत संयम करता है, व्रत उपवास करता है, तो उसे देखकर के आश्चर्य नहीं करना चाहिए बल्कि हर्ष प्रकट करना चाहिए-‘आप धन्य हो, आपने इतना बड़ा तप कर लिया, इतनी शक्ति आपके भीतर प्रकट हो गई है, भगवान मुझमें भी ऐसी शक्ति मिले। आप और-और अधिक से अधिक त्याग-तपस्या कर सको।’ अनुमोदना करो, हर्ष प्रकट करो तो पुण्य का बन्ध होता है। आश्चर्य आदि प्रकट करने से कई बार सामने वाला हतोत्साहित भी होता है, लोगों के शब्द भी कई बार लोगों को लग जाते हैं जिससे व्यक्ति नेगेटिव एनेर्जी का शिकार हो जाता है जिसे आप लोग लोक में बोलते हैं ‘नजर लग जाना’, ऐसे शब्दों का प्रयोग मत करो। एक तो तुम त्याग-तपस्या के क्षेत्र में पहले से कच्चे हो और दूसरा यदि किसी को त्याग-तपस्या के क्षेत्र में किसी को आगे बढ़ते देखते हो, तुम उसकी अनुमोदना नहीं करते हो तो और कच्चे हो जाओगे, उसको लेकर आलोचना करो तो और ज्यादा पाप का बन्ध होगा। आश्चर्य भी मत करो, आलोचना भी मत करो, हर्ष के साथ अनुमोदना करो, बिना व्रत किये भी महापुण्य के भागी बन जाओगे।

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