भारत में शिक्षा का माध्यम क्या होना चाहिए?

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शंका

लड़कियों के लिए प्रतिभास्थली जैसे संस्थान में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी से हिन्दी कर दिया गया है। इससे ये संस्थान अन्य आधुनिक संस्थानों जैसे स्तर को कैसे प्राप्त होगा?

समाधान

ये एक बहुत ऊँची सोच है। अंग्रेजी लोगों के जीवन का अंग जैसा बन गया है उसमें रच-पच गया है लेकिन इससे बहुत हानि हो रही है। अगर आपको ये जानना है, तो एक बहुत ख्यातनाम पत्रकार हैं- वेदप्रताप वैदिक– उनकी एक कृति है: सुभाषा लाओ और विदेशी भाषा हटाओ। आप उसको पढ़ोगे तो पता लगेगा कि देश का विकास तब तक नहीं हो सकता है जब तक देश से अंग्रेजी नहीं जायेगी। मनुष्य की जो मातृभाषा होती है उसका चिन्तन मूलतः उसी भाषा में होता है और अपनी भाषा में जब हम चिन्तन करते हैं तो बात अच्छे से अवधारित भी होती है। जो व्यक्ति अंग्रेजी माध्यम में पढ़ते हैं उनका चिंतन दो तरह का हो जाता है। उसमें उन्होंने बहुत सारी बातें लिखी और इसपर देश में बहुत सारी चर्चा भी हो रही है। 

जर्मनी, जापान, फ्रांस व चीन जैसे देश जो विकसित हुए वो इसी कारण से हुए कि उन्होंने अपनी मातृभाषा को नहीं छोड़ा। मातृभाषा बढ़ानी चाहिए। क्योंकि अंग्रेज से भी ज्यादा खतरनाक ये अंग्रेजी है। उसको ठीक करना चाहिए। ये Lord Macaulay की शिक्षा का विकास है। लार्ड मैकाले ने बहुत पहले कहा था कि ‘हमें भारत को गुलाम बनाने के लिए सबसे पहले उनके मेरुदण्ड को तोड़ना होगा और शिक्षा के माध्यम को बदलना होगा, उनकी भाषा को बदलना होगा।’ आचार्य गुरूदेव का इस तरफ ध्यान गया। और उन्होंने इस पर प्रयास किया है। ये उनका एक आह्वान है। ऐसा कुछ भी नहीं कि जो लोग हिन्दी माध्यम से नहीं पढ़ते उनकी बौद्धिक विकास की स्थिति नहीं होती। हम लोग हिन्दी माध्यम से ही पढ़े लिखे हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि हम लोग कुछ नहीं जानते हैं। बहुत से ऐसे लोग होते है जो अंग्रेजी माध्यम से पढ़ते हैं, न अंग्रेजी ढंग की बोल पाते है और नहीं हिन्दी ढंग की बोल पाते है। वो कहीं के नहीं होते इसलिए भारत में भारतीय भाषा बोलनी चाहिए। भारत अपने आप में समृद्ध देश है और इससे देश का उद्धार होगा। आचार्य श्री के दूरदर्शी सोच का ये एक उदाहरण है और इसके परिणाम समय पर आयेंगे। और देश में इस पर व्यापक बहस होनी शुरू हो गयी है।

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