मंदिरों में जमा अतिरिक्त राशि का सदुपयोग कहाँ करें?

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शंका

मंदिरों में जमा अतिरिक्त राशि का सदुपयोग कहाँ करें?

समाधान

जिन मन्दिरों में पर्याप्त धन है उन्हें उस धन का प्रयोग उन मन्दिरों के लिए करना चाहिए जहाँ साधन का अभाव है। 

मुझे ऐसा लगता है कि आजकल समाज में जो भी मन्दिरों का देखरेख करते हैं उनका भगवान से और धर्म से जुड़ाव कम, पैसों से जुड़ाव ज्यादा दिखता है। लोग पैसा बचाने में लगे रहते हैं, धर्म बचाने में नहीं। यदि तुम्हारी श्रद्धा धर्म से जुड़ी है और तुम्हारा मन भगवान से जुड़ा हुआ है, तो कहीं भी भगवान की उपेक्षा, धर्मायतन की उपेक्षा देखकर वेदना होगी और एक पल के विलंब के बिना तुम अपना पैसा वहाँ लगा दोगे। लेकिन लोग हैं जो मन्दिरों के पैसे पर भी कुंडली मारकर बैठ जाते हैं, तो ये प्रवत्तियाँ ठीक नहीं, श्वेताम्बरों से हमें सीख लेना चाहिए। 

सन २००२ की बात है, हम कम्पिल जी में थे। वहाँ एक कीर्ति स्तम्भ का शिलान्यास हुआ, उस कीर्ति स्तम्भ की संरचना भगवान महावीर के २६०० वें जन्म महोत्सव के उपलक्ष्य में किया जा रहा था। उसका शिलान्यास नाकोड़ा तीर्थ कमेटी के अध्यक्ष-मंत्री ने किया। उस कार्यक्रम में मुझे बुलाया गया, मैं शामिल हुआ, वहाँ के प्रमुख कार्यकर्ता थे हजारीलाल बाठीया। उन्होंने कहा कि ‘महाराज जी! हमारे यहाँ यह नियम है कि जहाँ भी मन्दिरों में surplus (अतिरिक्त) पैसा होता है, मन्दिरों का पैसा हम केवल मन्दिरों में लगाते हैं और जहाँ जरूरत होती है वहाँ लगाते हैं।’ उस कार्यक्रम के लिए तीस लाख की राशि नाकोड़ा तीर्थ की तरफ से दी गई थी। वो बोले ‘जहाँ भी जरूरत हो, हम धर्मायतन का पैसा धर्मायतन में ही लगाते हैं।’ दिगम्बरों को भी इससे प्रेरणा लेनी चाहिए क्योंकि मन्दिर में रखी राशि भी देवद्रव्य है, तुम्हारी अपनी जमा पूंजी नहीं, तुम्हारी अपनी बपौती नहीं, आप उसका उपयोग करो। 

हमारे भगवान कहते हैं कि ‘भविष्य की चिन्ता करो मत।’ कल की चिन्ता में बहुत ज्यादा फंड रखने की कोई जरूरत नहीं है। जब तक तुम्हारे मन में भगवान के प्रति श्रद्धा है, भगवान की पूजा कभी रुकेगी नहीं और जिस दिन श्रद्धा खत्म हो जाए उस दिन पूजा की जरूरत पड़ेगी नहीं। इसलिए सोचना ही नहीं, भगवान के कोई बाल-बच्चे नहीं, भगवान की कोई लायबिलिटी नहीं, वह तो चलता ही रहता है इसलिए इस बात पर बहुत गम्भीरता से ध्यान रखना चाहिए।

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