श्वेताम्बर समाज में मूर्तियों में आँखें क्यों लगाते हैं?

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शंका

श्वेताम्बर समाज में मूर्तियों में आँखें क्यों लगाते हैं, इन सब के बारे में जानना चाहते हैं?

समाधान

ये अपनी-अपनी परम्परा है। श्वेताम्बर परम्परा में सराग पूजा होती है, तो आँखें वगैरह लगते हैं, वस्त्र-आभूषण सब लगाते हैं, इसीलिए तो श्वेताम्बर हैं। दिगम्बर परम्परा में वीतराग पूजा-अर्चा की जाती है, इसलिए उनको निर्विकार रखा जाता है। 

अब रहा सवाल कि कोई समाज अधिक सम्पन्न है और कोई अपेक्षाकृत कम सम्पन्न है, तो इसका अनुमान ये नहीं लगाना चाहिए कि उनकी सम्पन्नता है वो सराग को पूजा करते हैं, इसलिए ज्यादा हैं, हम भी सराग को पूजने लगें तो हम भी ज्यादा सम्पन्न हो जाएँगे। आप अगर देखोगे कि दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जो किसी को नहीं पूजते हैं और सम्पन्न हैं। सवाल सम्पन्नता और विपन्नता का नहीं है। मैं आपसे कहूँ कि सम्पन्न धर्मात्मा नहीं होता, सम्पन्न पापी होता है क्योंकि धर्म करके पैसा कमाना कठिन है और पाप करके पैसा कमाना सरल है। एक वेश्या मिनटों में हजारों और लाखों रुपये कमा लेती है और एक सदाचारी व्यक्ति को पैसा कमाने के लिए सुबह से शाम तक पसीना बहाना पड़ता है। इसलिए बाहरी सम्पन्नता को इन सब बातों से जोड़कर देखना समझदारी नहीं है।

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