राजा श्रेणिक को तीर्थंकर पदवी क्यों मिलेगी?

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शंका

राजा श्रेणिक ने अपने लड़के के द्वारा छल से रानी चेलना से शादी की एवं मरा हुआ साँप (सर्प) मुनिराज के गले में डाल दिया, एवं बौद्ध धर्मी होते हुए भी वे तीर्थंकर क्यों बनेंगे?

समाधान

जैन धर्म की विशेषता यही है कि मनुष्य अज्ञानता में पाप करता है, तो ज्ञान से उसे साफ भी कर सकता है। बात को दोहराता हूँ। अज्ञान दशा में किये गये पाप को ज्ञान से साफ किया जा सकता है। श्रेणिक का पिछला अध्याय काला था। उसने खूब पाप किये लेकिन उसके जीवन में परिवर्तन आया तो भगवान महावीर की सेवा और भक्ति जैसी श्रेणिक ने की, ऐसी किसी ने नहीं की। ये भी तो एक उदाहरण है। तभी तो उसे श्रावक शिरोमणि कहा गया। भगवान महावीर का प्रधान श्रोता बनने का अधिकारी बना। 

तो तीर्थंकर इसलिए नहीं बन रहा है कि उसने अपने जीवन में अनाचार किये, मुनियों पर उपसर्ग किया, एक स्त्री का अपहरण कर के उससे विवाह किया या अन्य प्रकार का अभक्ष्य भक्षण किया। तीर्थंकर केवल इसलिए बन रहा है कि उसने विशुद्धि आदि सोलह कारण भावनाओं के बल पर सारे विश्व के कल्याण की उत्कृष्ट भावना भाई। इसके पीछे उसने क्षायिक सम्यक् दर्शन प्राप्त किया, तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया तब उसने ये पाया।

“तो फिर पाप करने से डरना नहीं चाहिए। जीवन में एक समय तक पाप करो। फिर किसी गुरु को पकड़ लो। उसके चरणों में समर्पित हो जाओ, उस पाप को साफ कर लो। अच्छा तरीका है!” ऐसा नहीं। श्रेणिक ने भगवान की शरण में जाकर अपना उद्धार किया एक बात, तो दूसरी तरफ उसने जो पाप किया उसके फल भोगने के लिए उसे नरक भी जाना पड़ेगा, जाना पड़ा है। भले ही चौरासी हजार वर्ष तक के लिए उसने REDUCE (कम) कर लिया, नरक को REFUSE (नामंज़ूर) नहीं कर सका। तो एक बात जीवन में सदैव ध्यान रखो, जहाँ तक सम्भव हो कोई गलत काम मत करो और गलत काम करने के बाद अज्ञान दशा में अगर गलत काम किया और गलती का एहसास हो गया, तो उसी दिन से अपने रास्ते को बदल दो। मन में ऐसी हीनता न आने दो कि अब मैं तो गया। नहीं, पतित से पतित प्राणी भी पावन बन सकता है। अपनी चेतना को जगा कर उस रास्ते को अंगीकार करो। तुम भी ऊँचाइयों को छू सकते हो और विशुद्धि के रास्ते को अपनाओ तो बहुत सम्भावना है। 

श्रेणिक भले ही पाप को रिफ्यूज नहीं कर सका, तुम रिफ्यूज कर लो, क्योंकि तुम्हारा पाप इतना गहरा नहीं जितना श्रेणिक का पाप था। श्रेणिक ने किसी का अपहरण किया था, श्रेणिक ने मुनीराज पर उपसर्ग किया था, तुमने अपने जीवन में कोई ऐसा कुकृत्य नहीं किया। यत्किंचीत् अपने जीवन में कोई दुष्कृत्य किया, उस दुष्कृत्य को अपनी विशुद्धि और धर्म की भावना के बल पर साफ कर सकते हो। ऐसा नहीं है कि हम रिफ्यूज न कर सकें, रिफ्यूज भी कर सकते हैं लेकिन तुम्हारा पाप मजबूत (डोमिनेट) हो तो रिफ्यूज भले न कर सको रिड्यूज तो किया ही जा सकता है। इसलिए ‘चरैवेति-चरैवेति’, आगे बढ़ते चलो तो धन्य होगा।

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