उत्तम शौच धर्म
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शौच का अर्थ शुचिभूत होना अर्थात् काल से आत्मा सप्तधातु मय शरीर के संसर्ग से अपवित्र कहलाता है। इस अपवित्र शरीर से भिन्न जो शुद्धात्मा का ध्यान करके उसी में रत रहता है तथा जो मैं सदा शुद्ध बुद्ध हूँ, निर्मल हूँ, स्फटिक के समान हूँ, मेरी आत्मा अनादि काल से शुद्ध है इस तरह हमेशा अपने अंदर ही ध्यान करता है वह शुचित्व है।
उत्तम प्रवचन
उत्तम शौच धर्म - लोभ को त्यागो
उत्तम शौच | मंगल प्रवचन | मुनि प्रमाणसागर जी
उत्तम सूक्तियाँ
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लोभ सारे पापों का मूल एवं अनर्थो की जड़ है।
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लोभ से तृष्णा, तृष्णा से मोह और मोह से दुख उत्पन्न होता है। अतः दुख से बचना चाहते हो तो लोभ को नियन्त्रित करो, क्योंकि लोभ दुखों का बीज है।
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लोभ से तृष्णा, तृष्णा से मोह और मोह से दुख उत्पन्न होता है। अतः दुख से बचना चाहते हो तो लोभ को नियन्त्रित करो, क्योंकि लोभ दुखों का बीज है।
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आकांक्षाएँ आत्मा को दरिद्र बनाती हैं।
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इच्छा कभी तृप्त नहीं होती, किन्तु यदि मनुष्य उसे त्याग दे तो वह उसी क्षण पूर्णता को प्राप्त कर लेता है।